फिर सदाबहार काव्यालय- 50
एक विषय बचपन: चार कवि
1.हां मैं बचपन हूं!
मैं अल्हड़ हूँ, मैं कोमल हूँ, मैं, हूँ एक पुलकित पंग-पराग,
हाँ मैं बचपन हूँ!
मैं बादल हूँ, मैं बारिश हूँ, मैं हूँ इक खिलता सा सावन,
हाँ मैं बचपन हूँ!
मैं आतुर हूँ, मैं उत्सुक हूँ, मैं हूँ जिज्ञासा का एक पुंज,
हाँ मैं बचपन हूँ!
मैं धरती हूँ, मैं अम्बर हूँ, मैं हूँ ब्रह्माण्ड का इक स्वरूप,
हाँ मैं बचपन हूँ!
मैं उत्सव हूँ, मैं मेला हूँ, मैं हूँ इस जग का इंद्रधनुष,
हाँ मैं बचपन हूँ!
मैं नटखट हूँ, मैं नादाँ हूँ, मैं हूँ इक आवारा बादल
हाँ मैं बचपन हूँ!
मैं निश्छल हूँ, मैं अविरल हूँ, मैं हूँ ईश्वर का इक स्वरुप
हाँ मैं बचपन हूँ!
मैं निर्भय हूँ, मैं निडर हूँ, मैं हूँ हिम जैसा ही विराट
हाँ मैं बचपन हूँ!
हाँ मैं बचपन हूँ! क्योंकि….
मैं बेटी हूँ, मैं बेटा हूँ, मैं मात-पिता का जीवन हूँ
मैं उनकी आँखों का ‘ध्रुव’ हूँ, मैं उनके मस्तक का “ गौरव “
मैं माँ की ममता का सुख हूँ, मैं पिता के सीने की ठंडक
मैं आँगन की किलकारी हूँ, मैं घर का जलता दीपक हूँ
मैं मानवता का वाहक हूँ, मैं राष्ट्रधर्म का हूँ रक्षक
मैं मुझमें हूँ मैं तुझमें हूँ, मैं ही हूँ हमसब का भविष्य
क्योंकि…मैं बचपन हूँ मैं बचपन हूँ, मैं ही हूँ सबका स्वर्ण काल
हाँ मैं बचपन हूँ!!
-गौरव द्विवेदी
गौरव द्विवेदी की ब्लॉग वेबसाइट-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/gaurav_d81yahoo-com/
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2.बाल्यकाल
कर्णप्रिय, हे बाल्यकाल!
तुझमें बसता है स्वर्गकाल
ईश्वर स्वरूप, हे विकारमुक्त
अंधकार दूर, प्रकाशयुक्त।।
जिज्ञासा की है उद्गम
विज्ञान ज्ञान तुमसे दमखम
मतभ्रम नही, तू तर्कपूर्ण
गुरुज्ञान सरीखा, तथ्यपूर्ण।।
ऊर्ज़ा का है अथाह प्रवाह
तीव्र परन्तु है सार्थक बहाव
विज्ञान ज्ञान है सर्वकालिक
हे विज्ञानी! तू दीर्घकालिक।।
प्रकृति ज्ञान तुमसे आयी
खुल गया पिटारा जीवन का
तुमसे ही विज्ञान बनी
समय चक्र है बचपन का।।
-ज़हीर अली सिद्दीक़ी
संक्षिप्त परिचय
ज़हीर अली सिद्दीक़ी
जन्म-१५ जुलाई,१९९२
ई-मेल – [email protected]
शिक्षा-स्तनातक एवं परास्नातक -दिल्ली विश्वविद्यालय
रचनाएं- सेतु, साहित्यकुञ्ज, साहित्यसुधा, सहित्यनामा, साहित्यमंजरी, स्वर्गविभा, जय विजय, पञ्चदूत, फिर सदाबहार काव्यालय(नव भारत टाइम्स),मेरे अल्फ़ाज़(अमर उजाला) में रचनाएं प्रकाशित
सम्प्रति- (पी-एच.डी.) रसायन तंत्रज्ञान संस्थान मुम्बई
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3.परिंदे घर लौट आए!
मौसम ने ली करवट, सोए मासूम बच्चे-सी,
प्राची खिलखिलाई झूम-झूम, फूल गेंदे-सी,
सूरज ने दौड़ाए घोड़े, राणा के चेतक-से!
गुलाल उण्डेलती सुबह आयी, हौले-हौले-से!
मन के कमल खिले, कपोलें हुई छुई मुई-सी!
गीत गुनगुनाने लगे भंवरे, डालियाँ नाची पगलाई-सी!
इत्र से महका जहां, पुलकित रोम-रोम सारा!
धरती का आंचल लहराया, फैला उजियारा!
परिंदों ने छोड़ा घोंसला, मखमली पर फैलाए!
खोजने नन्हों के लिए दाना, आसमान नाप आए!
तपती दोपहरी में, बिछड़ते अपने ही साए.
आंखों की गहरी झील में, उतर जब मुस्कुराएं,
थकान भूल अपनी, बादलों से मुंह मोड़ आए!
याद कर नन्ही जान को, परिंदे घर लौट आए!
-कुसुम सुराणा
कुसुम सुराणा की ब्लॉग वेबसाइट-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/ironlady-kusumgmail-com/
4.मैं आधुनिक बचपन हूं
मोबाइल ने मुझको पाला,
रोबॉट ने हिलराया-दुलराया,
गूगल ने मुझे पाठ पढ़ाया,
असीम ज्ञान का की कतरन हूं,
मैं आधुनिक बचपन हूं.
समय की डोर पकड़कर चलना,
सीखूं सबसे आगे बढ़ना,
छोड़ा मैंने लकड़ी का पलना,
प्रकृति की मैं अचकन हूं,
मैं आधुनिक बचपन हूं.
चिड़िया से सीखा है उड़ना,
वायुयान से सीखा मुड़ना,
गगनयान से शशि को छूना,
ये न समझना भटकन हूं,
मैं आधुनिक बचपन हूं.
भूतकाल से सबक हूं लेता,
वर्तमान को जी भर जीता,
नजर भविष्य पर रखता हूं,
आनंद की मैं सिहरन हूं,
मैं आधुनिक बचपन हूं.
बाधाओं से तनिक न डरता,
कभी बिछलता, कभी मचलता,
साथ सभी के मैं हूं चलता,
कभी-कभी मैं छलकन हूं,
मैं आधुनिक बचपन हूं.
-लीला तिवानी
लीला तिवानी की ब्लॉग वेबसाइट-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/
चलते-चलते
अंक 2400 के रूप में प्रस्तुत है फिर सदाबहार काव्यालय का यह पचासवां अंक. हमारे ब्लॉग को इन दोनों संख्याओं 2400 और 50 तक पहुंचाने के लिए आप सबका सहयोग और प्रोत्साहन सराहनीय है. आप सबको बहुत-बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं.
लीला तिवानी
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता
मेरा नया बचपन
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥
चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥
किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥