पर्यावरण

पर्यावरण, प्रकृति, पृथ्वी, नीरीह जीव-जन्तु और हमारा दायित्व

मनुष्य जनित पर्यावरण विनाश की वजह से पिछले पचास वर्षों में दुनियां भर में ऐसी 60 प्रतिशत वन्य जीवों की प्रजातियों का इस धरती से विलुप्तिकरण हो चुका है। अगर मानव प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अपने कुकृत्यों से बाज नहीं आयेगा, (वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए लगता भी नहीं कि वह अपने कुकृत्यों से बाज आयेगा?), तो भविष्य में बहुत जल्दी एक ऐसा समय आयेगा कि इस शस्य-श्यामला प्यारी धरती जो विविधताओं और अनुपम सुन्दरता और सौंदर्य से भरे अपने लाखों रंग-विरंगे-विलक्षण-अनुपम पुष्पों, तितलियों, पक्षियों और जीव-जन्तुओं से सदा के लिये वीरान हो जायेगी और अत्यन्त गंभीर वायु, जल, ध्वनि प्रदूषण की वजह से यह धरती ‘मानव प्रजाति ‘के लिए भी रहने लायक नहीं रहेगी। अफ़सोस अब तक ज्ञात ब्रह्मांड में ‘जीवन के स्पंदन युक्त हरी-भरी, सूदूर अंतरिक्ष से देखने पर अपने अप्रतिम सौंदर्य से परिपूर्ण ‘हरे-नीले रंग की आभा से परिपूर्ण ‘हमारी यह धरती मानव द्वारा किए कुकृत्यों की वजह से पेड़ों, जंगलों, नदियों, तालाबों, पशु-पक्षियों, भौंरों, तितलियों, पुष्पों और अन्त में मानवों से भी वीरान होकर जीवन के स्पंदन और अपनी जीवन्तता से मुक्त होकर एकदम वीरान रेगिस्तान में बदल जायेगी और तब अंतरिक्ष से किसी पराग्रहीय प्राणी को हमारी धरती अपनी हरितिमा लिए नीले रंग की अनुपम सौंदर्य की जगह एक भूरे रंग के एक निर्जन, वीरान, जीवन के स्पंदन से मुक्त एक ग्रह के रूप में दिखाई देगी। वास्तव में यह इस पूरे ब्रह्मांड के लिए एक बहुत ही दुःखद और अत्यन्त निराशाजनक स्थिति होगी, क्योंकि आज के ज्ञात मानवीय इतिहास में आज का वर्तमानकाल तथाकथित सबसे ज्यादे वैज्ञानिक उपकरण़ों, रेडियो दूरबीनों, आधुनिक संचार माध्यमोंं से सुसज्जित और वायेजर-2 नामक अंतरिक्ष यान इस सौर मंडल से भी अरबों-खरबों किलोमीटर दूर सूदूर अंतरिक्ष के अंधेरे कोने में भेजने वाली वैज्ञानिक विरादरी के पास अभी तक लाखों प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित तारों और ग्रहों को टटोलने के बाद भी हमारी पृथ्वी जैसी, जीवन के स्पंदन से भरे-पूरे ग्रह को तलाशने में अभी तक सफलता नहीं मिली है।
हमारी पृथ्वी अपने आँगन में प्रकृति और पर्यावरण नामक अपने करिंदों से करोड़ों-अरबों वर्षों के अथक लगन, परिश्रम और अपनी अद्भुत और उत्कृष्ट सोच से करोड़ों किस्म के फूलों, रंग-विरंगी तितलियों, भौरों, सुरीले कंठ वाली और अपने अद्वितीय रंग की छटा बिखेरने वाले परिंदों, हरे-भरे मैदानों में मन्त्रमुग्ध करतब दिखाने वाले सैकड़ों नस्लों के जंगली मृगों, हिरनों, खरगोशों, भेड़ों, बकरियों, घोड़ों, गेंडों, हाथियों तथा जल में असंख्य रंगरूप की व विविध आकार प्रकार की मछलियों जो कुछ मिलीमीटर से लेकर हजारों टन तक के आकार की हैं, का समायोजन बहुत करीने से किया है, इसके साथ ही इनकी संख्या को नियन्त्रित करने हेेतु एक संतुलनकारी व्यवस्था हेतु कुछ हिंसक और अपने विचित्र चित्रकारी वाले शिकारी जानवर जैसे नभ में बाज, जल में किलर ह्वेल और थल पर चीते, तेंदुए, बाघ और सिंह भी पैदा किया है । इसके अतिरिक्त वनों में सूक्ष्मदर्शी से देखने लायक पौधों से लेकर विशालकाय वटवृक्ष और शिकोया जैसे विराट काया वाले पेड़ तक पैदा किए हैं, इसके अतिरिक्त इस समस्त वातावरण के अपने रंगविरंगे अद्भुत सौन्दर्य के साथ अपने सुगंध से विस्मित कर देने वाले पुष्पों जैसे बेला, चंपा, हरसिंगार, चमेली, गुलाब और केसर आदि अनन्त पुुष्प और पुष्पों की घाटियाँ तक हम मानवों को सुलभ कराईं हैं, खाने के लिए असंख्य और विविध सुगंधित व रसीले फल व पौष्टिकता से भरपूर सोने जैसा दमकता गेंहूँ और सुगंधित चावल भी मुहैया कराई है ।
इस संपूर्ण ब्रह्मांड में अभी तक ज्ञात सांसों के स्पंदन से युक्त नीली- हरितिमा युक्त पृथ्वी अपने जीवित परिवार युक्त ‘इकलौती ग्रह ‘ है, कितना दुखद है कि ‘मनुष्य ‘नामक एक इसी ग्रह का ‘कथित सबसे बुद्धिमान जीव ‘अपने कुकृत्यों से इस पथ्वी को उसके सम्पूर्ण वानस्पतिक और जैविक सम्पदा के साथ स्वयं मानव प्रजाति भी सब कुछ समझते हुए भी विध्वंस और महाविनाश करने को उद्यत है । इस दुनिया के कुछ दूरदर्शी मानवों के कुछ समूह इस खतरे को भांपकर इसके सुधार का भरपूर प्रयास करने का प्रयत्न कर रहे हैं, परन्तु अत्यन्त दुख की बात है कि इसी दुनिया के कुछ ‘दंभी मूर्ख ‘सत्ता के दंभ में चूर, उस गंभीर और नेक प्रयास को भी धूलधूसरित करके रख देते हैं । आश्चर्य और दुखद है कि इन मूर्ख दंभियों को ये समझ नहीं आता कि भयावह प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग से, लाखों सालों से जमें ग्लेशियरों के पिघलने से इस दुनिया के सभी वनस्पतियों और जीवों का भयंकरतम् विनाश होगा, कोई नहीं बचेगा { समस्त मानव प्रजाति भी }, सब कुछ तबाह हो जायेगा । इसलिए विश्व के प्रबुद्ध लोगों का यह नैतिक, सामाजिक, न्यायोचित कर्तव्य है कि उन भटके हुए मूर्ख सत्ता के मद में चूर दंभी कर्णधारों को किसी तरह समझा-बुझाकर पटरी पर लांए और इस विध्वंस और महाविनाश के कग़ार पर खड़ी पृथ्वी के पर्यावरण और प्रकृति को बचाकर इसके अद्भुत और अतुलनीय जैव व वानस्पतिकीय विविधता को किसी भी सूरत में बचाएं ।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल .nirmalkumarsharma3@gmail.com