हवसी तेरे हवस ने की बरबाद जिंदगी।
हँसती हँसती उजाड़ दीआबाद जिंदगी।
सुंदर काया देख क्यों तिलमिला उठा,
जला दी क्यों काफिर नायाब जिंदगी।
कानून बददुआओं का असर होता नहीं,
कब तक रहेंगे करते यह खराब जिंदगी।
चलना फिरना दुष्कर किया है नारी का,
कब तक वो जीए ओढ़े नकाब जिंदगी।
खुदा का जिन को खौफ़ रहा रता नहीं,
कैसे जीएगी अमन से यह शाद जिंदगी।
उड़ा दो शरेआम जो करता जुल्मो कर्म,
काट दो सर जुल्मी का करे याद जिंदगी।
— शिव सन्याल