मैं अदनी सी एक बाती
तेल रीत गया
दीपक का
कुछ बाकी मुझमें
इसलिए जल रही
नाम हो रहा
फिर भी उसका
जो जला कभी ना
दीपक कहाँ उजाला करता
तेल संग जलती-भुनती हूँ
प्राणोत्सर्ग को मैं चुनती हूँ
भूख श्रेय की कभी रही ना
करती आई मैं उजियारा
मैं बुझती दीपक बुझ जाता
अंधकार साम्राज्य जमाता
बात समझ, क्यूँ नहीं आती
मैं अदनी सी हूँ एक बाती ।
— व्यग्र पाण्डे