नवल बसंत
संसद के गलियारे में गूँजा भारत का गान।
पाने वाला है भारत फिर से खोया सम्मान।।
बँटवारे का दाग मिटाने को हम हैं तैयार।
देर सही पर अब ना छोड़ेंगे अपना अधिकार।।
एक धर्म का एक पंथ का नहीं चलेगा राज।
शांति-दूत अब बना कबूतर केसरिया-सा बाज।।
सात दशक के उहा – पोह का हो जाएगा अंत।
पतझर पीड़ित पादप पर आएगा नलव बसंत।।
वीर भरत के भारत का कैसे कोई हो बाप!
आजादी-बँटवारे का संगम भीषण अभिशाप।।
संशोधन का समय आ गया कर लें भूल सुधार।
भारत माँ की अम्बर में गूँजे जयजय जयकार।।
— डॉ अवधेश कुमार अवध