ग़ज़ल
रात को रात बोलता हूँ मैं
लोग कहते हैं सिरफ़िरा हूँ मैं
इम्तिहां ख़ूब लीजिये मेरा
मुश्किलों में पला बढ़ा हूँ मैं
मंज़िलों के करीब जाने को
टीस ख़ारों की सह चला हूँ मैं
एकला मुझको मानने वाले
गौर से देख काफ़िला हूँ मैं
दौरे नफ़रत की धुँध में गुम हूँ
चाह का लापता पता हूँ मैं
जिनपे सब कुछ लुटा दिया मैने
अब वो कहते हैं बे वफ़ा हूँ मैं
जी हुजूरी नही हुई मुझसे
सबसे पीछे तभी खड़ा हूँ मैं
— सतीश बंसल