“भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवाद” : पूर्वोत्तर के उग्रवाद पर प्रामाणिक पुस्तक
स्वतंत्रता के बाद से ही पूर्वोत्तर के राज्य उग्रवादी गतिविधियों से जूझते रहे हैं I विद्रोह और उग्रवाद को दबाने की कोशिशें हुईं लेकिन रक्तबीज की तरह किसी न किसी रूप में उग्रवाद अपना सिर उठा ही लेता है I पूर्वोत्तर का यह दुर्भाग्य है कि पर्याप्त जल संसाधन, प्राकृतिक सम्पदा और जनशक्ति के बावजूद उग्रवाद के पंक में पूर्वोत्तर के विकास का रथ धंसता रहा I विद्रोह, संघर्ष एवं अलगाववादी घटनाओं ने इस क्षेत्र के विकास का मार्ग अवरुद्ध कर दिया I पूर्वोत्तर के राज्यों की विकासहीनता के लिए दिल्ली भी कम दोषी नहीं है I दिल्ली में बैठे अधिकारियों को पूर्वोत्तर के भूगोल, इतिहास, विविधवर्णी संस्कृति की बुनियादी समझ भी नहीं है । ये अधिकारीगण दिल्ली, उत्तर प्रदेश अथवा बिहार के चश्मे से ही पूर्वोत्तर को देखते हैं I अतः दिल्ली में बनी योजनाएँ पूर्वोत्तर में विफल हो जाती हैं। यद्यपि म्यांमार और बांग्लादेश से बेहतर संबंध होने के कारण पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों की गतिविधियों पर बहुत हद तक लगाम लगी है, परन्तु समय – समय पर ये संगठन अपनी उपस्थिति का एहसास कराते रहते हैं I “भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवाद” शीर्षक पुस्तक में डॉ सुरेन्द्र कुमार मिश्र और डॉ आकाश मिश्र ने पूर्वोत्तर के राज्यों की उग्रवादी गतिविधियों की शोधपरक पड़ताल की है I पुस्तक तेरह अध्यायों में विभक्त है I लेखक द्वय ने पूर्वोत्तर के आठों राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, सिक्किम में उग्रवाद के कारणों की पड़ताल की है I लेखकों ने इन राज्यों के उग्रवादी संगठनों के इतिहास और एजेंडे की सविस्तार विवेचना की है I पुस्तक के ग्यारहवें और बारहवें अध्याय का क्रमशः शीर्षक है ‘’इस्लामिस्तान बनाने की रणनीति” और “आई.एस.आई. की घातक योजना’’ I इन अध्यायों में साक्ष्यों के आलोक में पकिस्तान की धूर्त चालों का खोजपूर्ण विश्लेषण किया गया है I स्पष्ट है कि पाकिस्तान पूर्वोत्तर में उग्रवाद को बढ़ावा देता है I लेखक ने लिखा है -“पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी (आई.एस.आई.) इस्लामिक इंकलाब के साथ वृहत्तर बांग्लादेश के सपने को अमलीजामा पहनाने की साजिश में जुट गई है I उसकी मंशा पूर्वोत्तर भारत से हिंदू आबादी को कश्मीर घाटी की तरह खदेड़कर भारतीय सेना और सरकार के सामने नई मुश्किलें खड़ी करने की है I असम के पूर्व राज्यपाल एस. के. सिन्हा और ख़ुफ़िया एजेंसियों ने केंद्र सरकार को आगाह करते हुए भेजी गई अपनी रिपोर्टों में यह जानकारी दी है I राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि सीमा पार से हो रही घुसपैठ को मात्र क्षेत्रीय समस्या मानकर नजरअंदाज किया जाना खतरनाक होगा I” यह सर्वविदित है कि पूर्वोत्तर के चरमपंथी संगठनों का अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक उग्रवादी संगठनों से गठजोड़ है I लेखक द्वय ने पूर्वोत्तर में घुसपैठ के बारे में आँख खोलनेवाला तथ्य रखा है – “देश के पूर्वोत्तर राज्यों में गैर कानूनी तरीके से बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों के आने से एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो चुकी है I इसके साथ ही रोजाना औसतन 1000 बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से प्रवेश करते हैं I बांग्लादेशियों की संख्या 1 करोड़ 20 लाख से 1 करोड़ 50 लाख के बीच है I इस समय असम में लगभग 40 लाख तथा त्रिपुरा में 8 लाख अवैध घुसपैठिए हैं I असम में 30 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं जिसमें 18 प्रतिशत बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं I अवैध घुसपैठिए इस क्षेत्र के अर्थतंत्र, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को चौपट कर रहे हैं I जब इनके निष्कासन की बात की जाती है तो इसे हिंदू – मुस्लिम का प्रश्न बनाकर कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है मानो देश के अल्पसंख्यकों पर भयानक एवं अमानवीय अत्याचार किया जा रहा है I देश के उलेमा और मुस्लिमपरस्त सेकुलरी लोग इसके बचाव में कुतर्क और गलत आंकड़े लेकर खड़े हो जाते हैं I यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज असम में असम मूल के लोगों का बहुमत मात्र ब्रह्मपुत्र की घाटियों तक ही सीमित होकर रह गया है I” दोनों लेखकों ने केवल उग्रवाद की समस्याओं और उसके कारणों का ही विवेचन नहीं किया है बल्कि उग्रवाद से निपटने के लिए ठोस सुझाव भी दिए हैं I पुस्तक के तेरहवें अध्याय का शीर्षक है “समस्या समीक्षा और सुझाव” I इस अध्याय में पूर्वोत्तर के उग्रवाद पर प्रभावी लगाम लगाने के लिए सार्थक सुझाव दिए गए हैं जो किसी भी सरकार अथवा सरकारी एजेंसी के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं I पूर्वोत्तर का समाज उग्रवाद को पसंद नहीं करता I लेखकों ने इस सकारात्मक तथ्य को भी रेखांकित किया है –“विगत छह दशक से जारी अनवरत हिंसा का घातक प्रभाव पूर्वोत्तर क्षेत्र के समाज पर परिलक्षित हो रहा है I देर से और धीरे – धीरे सही, लेकिन हिंसा के विरुद्ध और बेहतर समाज के लिए सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है I आम लोग यह महसूस करने लगे हैं कि असंतोष व्यक्त करने का यह तरीका समाज एवं मानवीय दृष्टि से उचित नहीं है I” प्रस्तुत पुस्तक लेखकों के परिश्रम, खोजी प्रवृत्ति और वैदुष्य का साक्षी है I यह पुस्तक केवल पूर्वोत्तर में रुचि रखनेवाले विद्वानों और शोधार्थियों के लिए ही नहीं बल्कि सरकारी विभागों और एजेंसियों के लिए भी उपादेय है I
पुस्तक का नाम : भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवाद
लेखक : डॉ सुरेन्द्र कुमार मिश्र और डॉ आकाश मिश्र
पृष्ठ : 396, मूल्य : 750/-
प्रकाशक : मित्तल पब्लिकेशन, 459/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002
दूरभाष : 011 -23250398, ईमेल : [email protected]