लोकतांत्रिक ढेले
आजकल देश को सही मायने में विशुद्ध लोकतांत्रिक बनाने के लिए ढेलेबाजी की जरूरत महसूस की जा रही है, ऐसा क्यों? क्योंकि यह एक प्रकार की सेक्युलरिज्म की भी अभिव्यक्ति है। वैसे तो इसके अभिव्यक्ति के कई तरीके हैं, लेकिन अन्य तरीके पुराने पड़ने के साथ अप्रभावित टाइप के हो रहे थे। कोई भी लोकतांत्रिक देश हो, अगर यह गुण प्रदर्शित न हो तो फिर काहे का सेक्युलर देश और काहे का उसमें लोकतंत्र। इधर क्या है कि ईवीएम की बदमाशी के कारण, देश में सेक्युलरता है भी कि नहीं? जैसा प्रश्न मौजू हो चला था और खासकर श्रेष्ठ बौद्धिक जनों का आत्मविश्वास डगमगा रहा था। इनने देश हित में इसके परीक्षण की आवश्यकता को महसूसा और अपने काम पर लग गए। इनके अनुसार देश की सेक्युलैरिटी बरकरार रखने के लिए सेक्युलर नागरिक की ही आवश्यकता होती है नानसेक्युलर टाइप नागरिक नहीं चल पाएंगे।
बस इसी एहसास के साथ सेक्युलर टाइप के नागरिकों को सड़क पर निकालने की जरूरत थी और निकाले भी गए तथा परीक्षणकार्य संम्पन्न हुआ। इस परीक्षण के इंस्ट्रूमेंट के रूप में ईंट, पत्थर, कतला, आग आदि का प्रयोग किया गया। वैसे भी ढेलेबाजी कम पत्थरबाजी कश्मीर में आजादी के मतवालों का अजमाया हुआ भरोसेमंद हथियार तो है ही! भारत का श्रेष्ठ बौद्धिक और शांतिप्रिय समुदाय इसके महत्व को समझता है। इसीलिए इधर भी इसे तात्कालिक और सटीक औजार के रूप में मान्यता प्रदान की गई।
लेकिन मेरे लिए यहाँ थोड़े कंन्फ्यूजन की स्थिति बन रही है, वह यह कि, यह आजादी का हथियार है या कि लोकतंत्र का? वैसे अगर ध्यान दिया जाए तो पता चलता है कि भारतनाम्ना देश में पहले आजादी आई फिर लोकतंत्र की पैदाइश हुई। मतलब ढेलेबाजी प्रकारांतर से पुनः विशुद्ध लोकतंत्र स्थापित किए जाने का प्रयास है। ये ईंट-पत्थर नहीं लोकतांत्रिक ढेले हैं, लेकिन सरकार है कि गुंडागर्दी पर उतर आई है और इतने शांतिपूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लोकतंत्र के ऐसे शुभेच्छुओं को कुचलने के लिए इनपर रोडरोलर चला रही है।
मेरा भी यही मानना है कि सरकार भी आखिर अपने को एक चुनी हुई सरकार ही मानती है, भले ही यह ईवीएम से क्यों न निकली हो, तो इसे भी चाहिए कि विशुद्ध लोकतंत्र के मतवालों को बोरे भर-भर कर लोकतांत्रिक ढेले मुहैया कराए और जम कर इनका प्रयोग करने दे तथा इन ढेलों को रोडरोलर से दबाकर सड़क ऊँची कर दे। इसप्रकार ऊँचाई को प्राप्त इस लोकतांत्रिक सड़क पर खड़े होने से ही विशुद्ध लोकतंत्र में श्वास लिया जा सकता है। सरकार को यही सलाह है कि भक्ति-धारा में डूबने के डर से उपजे जनविरोध से बचने के लिए राष्ट्रहित में इसी पॉलिसी पर काम करे तथा विशुद्ध लोकतंत्र की अलख जगाए। इसके लिए मशाल जलाने की भी जरूरत नहीं, केवल जलाई जा रही सरकारी संम्पत्तियों, बसों आदि को जलाते-जलते रहने देना चाहिए तथा फायर ब्रिगेड को बैन करे। फिर देखिएगा! भारतीय लोकतंत्र का जलवा!! पूरी दुनिया में छा जाएगा ।
खैर एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य पर भी ध्यान दिलाना है कि आजाद भारत को आजाद सिद्ध करने के लिए ऐसे कृत्य बेहद जरूरी माने जाने लगे हैं। इसीलिए भाँति-भाँति के आंदोलनकारी, जैसे आरक्षण से लेकर अपनी-अपनी संस्कृति-सभ्यता, भाषा-जाति-धर्म आदि के समर्थक या विरोधी, ढेलेबाजी-आगजनी-तोड़फोड़ करते हुए अपना लोकतांत्रिक धर्म निभाते हुए देखे जा सकते हैं।
अतः इस देश के सभी टाइप के बुद्धिमान प्रजातियों से अपील है कि बाल की खाल निकालना बंद करें। चूँकि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी तरह के आंदोलनकारियों का तरीका लगभग एक ही है, इसी से स्वयमेव यह भी सिद्ध है कि यह देश सेक्युलर था, है और रहेगा। बस सरकारें ऐसे आंदोलनों पर रोडरोलर न चलाए, अन्यथा ऐसी सरकार को नानसेक्युलर और अलोकतांत्रिक माना जाए, क्योंकि शांतिप्रियता धर्मनिरपेक्षता नहीं मानी जा सकती ।