मुक्तक/दोहा

दोहे रमेश के नववर्ष पर

चला वर्ष उन्नीस भी, छोड सभी का साथ.
हमें थमा कर हाथ में, नये साल का हाथ..
पन्नो मे इतिहास के, लिखा स्वयं का नाम.
चला वर्ष उन्नीस भी, यादें छोड़ तमाम..
आने को मुस्तैद है, नया नवेला वर्ष.
दिल में सबके प्यार का, दिखे उमड़ता हर्ष..
चला वर्ष उन्नीस भी, खेल कई नव खेल.
हुए बरी कुछ लोग तो, गए भ्रष्ट कुछ जेल..
मेरी है प्रभु आपसे, यही एक अरदास.
नए वर्ष मे देश में, घर घर हो उल्लास..
जाते-जाते साल यह, करा गया अहसास.
नेताओं पर कीजिये, नहीं मित्र विश्वास..
हो जाए अब तो विदा, कलुषित भ्रष्टाचार.
आई है इक बार फिर, बहुमत की सरकार..
ज्यों पतझड़ के बाद ही,आता सदा बसंत.
खुशियां नूतन वर्ष में, सबको मिलें अनन्त..
पूरा हमें यकीन है, शासन से इस बार.
नया पिटारा हर्ष का, देगी कुछ सरकार..
बदली है तारीख बस, बदले नहीं विचार.
नए साल का कर रहे,नाहक ही सत्कार..
जाते जाते हो गया, पिछला साल उदास.
बन जाऊंगा शीघ्र ही, बोला मैं इतिहास..
मदिरा में डूबे रहे, लोग समूची रात.
नये साल की दोस्तों, यह कैसी सुरुआत..
नये साल का कीजिये, जोरों से आगाज.
दीवारों पर टांगिये, नया कलैंडर आज..
ढेरों मिली बधाइयाँ, बेहिसाब संदेश.
मिली धड़ी की सूइंयाँ, ज्यों ही रात “रमेश”..
नये साल की आ गई, नयी नवेली भोर.
मानव पथ पे नाचता,जैसे मन मे मोर..
आयेगा नववर्ष में, शायद कुछ बदलाव.
यही सोच कर आज फिर, कर लेता हूँ चाव..
घर में खुशियों का सदा, भरा रहे भंडार.
यही दुआ नव वर्ष मे,समझो नव उपहार..
ऱिश्ता वो जो टूटकर,हुआ अलग इस साल.
हो जाए नववर्ष मे, शायद पुन: बहाल..
देना है नव वर्ष मे, उनको भी अंजाम.
नही मुकम्मल हो सके, विगत वर्ष जो काम..
घर में खुशियों का सदा, रहे भरा भंडार.
यही दुआ नव वर्ष मे, समझो नव उपहार..
— रमेश शर्मा

रमेश शर्मा

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