दक्षिण एशिया के देशों में व्याप्त अंधविश्वास और उससे अपनी जान गंवाते लोग
दक्षिण एशिया के देश यथा भारत,पाकिस्तान, बांग्लादेश,नेपाल,श्रीलंका,म्यांमार आदि देश अभी भी भयंकर गरी़बी,अशिक्षा,अंधविश्वास आदि से बुरी तरह त्रस्त हैं,मसलन अभी पिछले दिनों लगे सूर्यग्रहण में कई समाचार पत्रों में भारत और पाकिस्तान से यह समाचार विस्तृत रूप से सचित्र प्रकाशित हुए कि,जिसमें वहां के अंधविश्वासी लोग अपने शारीरिक रूप से अपंग बच्चों को इस अंधविश्वास के चलते केवल उनके सिर को छोड़कर उनका शेष संपूर्ण शरीर जमीन में पूर्णतः गाड़ दिए,कि इससे उनकी अपंगता ठीक हो जाएगी,हमें नहीं पता इस अंधविश्वासी कृत्य से उनके बच्चे कितने भले-चंगे हो गये,परन्तु यह तथ्य तो सर्वमान्य है कि दक्षिण एशिया के ये देश आज के ज्ञान-विज्ञान के आधुनिक युग में भी घोर अंधविश्वास से ग्रस्त हैं।
इसी तरह की एक घोर अंधविश्वासी परम्परा,जिसे चौपदी कहते हैं,नेपाल में अभी भी प्रचलित है,जिसकी वजह से हरेक साल रजस्वलावस्था वाली युवा लड़कियाँ,नेपाल के भयंकरतम् ठंड में मर जाती हैं,नेपाल की इस कुप्रथा में उन रजस्वला स्त्रियों के लिए,उनके अपने मूल घर से बाहर एक बहुत ही छोटी सी मिट्टी,पत्थर की झोपड़ी,माँदनुमा बनाकर दे दी जाती है,ताकि वह अपना माहवारी वाला समय उसी में रहकर बिताए,इस अंधविश्वासी रिवाज में अक्सर वह लड़की या महिला अत्यधिक ठंड की वजह से या धुएं के कारण दम घुटने से या साँप के काटने से मर जाती हैं।
नेपाल में इस ‘चौपदी ‘के बारे में बच्चों को किशोरावस्था से ही सिखाया जाता है कि ‘रजस्वला महिलाओं के साथ किसी भी तरह का संपर्क दुर्भाग्य लाएगा। ‘ और यही अंधविश्वासी मिथक नवयुवतियों की मौत का सबब बना हुआ है। नेपाल सरकार इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए भरपूर प्रयास कर रही है,परन्तु नेपाल के दूरदराज़ वाले स्थानों से इस तरह की क्रूरताजन्य प्रथा से अभी भी नवयुवतियों के मरने की खबरें आ ही जातीं हैं।
नेपाल जैसे पिछड़े देश के अतिरिक्त भारत जैसे देश जो आजकल अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक लम्बी छलांग लगा रहे हैं,में भी अभी भी पुत्र प्राप्ति के लिए छोटे-छोटे बच्चों की बलि लेने के नाम पर उनकी नृशंस हत्याओं की खबरें,अक्सर समाचार पत्रों की सुर्खियों में आतीं ही रहतीं हैं । अंधधर्म और आस्था के नाम आज के वैज्ञानिक युग में भारत में अभी भी प्राचीनकाल की सड़ी-गली परम्पराएं ढोई जा रहीं हैं। आश्चर्य और दुःख इस बात का है कि आम जनता के साथ वर्तमान राजनैतिक दल भी आस्था के नाम पर इन अंधविश्वासी और उल जुलूल प्रथाओं को जारी रखने की मूर्खतापूर्ण अपील और आह्वान न्यायपालिका से भी करते रहते हैं,इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण शबरीमाला मंदिर में भारतीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कथित कुँवारे भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए सभी महिलाओं के दर्शन करने के निर्णय को पलटने के लिए पुनर्विचार याचिका दाखिल करना है। इस देश में इससे दुःखद क्या बात होगी कि एक समतामूलक व तर्कसंगत आधार पर लिए गए निर्णय को पुनः आस्था और अंधविश्वास के नाम पर बदलने के लिये पुनर्विचार याचिका सुप्रीमकोर्ट द्वारा स्वीकार भी कर लिया गया है
— निर्मल कुमार शर्मा