लघुकथा

पोस्टर

”कितनी देर से पोस्टर ढूंढ रही हो, अभी तक नव वर्ष का पोस्टर नहीं ढूंढ पाई हो!” वनिता हैरान थी!

”पोस्टर तो एक-से-एक बढ़कर हैं, पर वर्तनी की त्रुटियों का क्या करूं?” अंकिता ने प्रश्न पर प्रतिप्रश्न किया.

”ऐसा क्या हो गया है?”

”तुम्हीं देखो, नए साल का यह पोस्टर ,” अंकिता ने एक पोस्टर दिखाते हुए कहा-
कुछ को मेरा इंतजार हैं,
कुछ का मुझे इंतजार है.
अब कुछ को मेरा इंतजार हैं, में ‘हैं’ पर बिंदी लगाना कहां तक ठीक है? इस बिंदी को तो हटाना ही पड़ेगा न! इंतजार एकवचन है. है पर बिंदी बहुवचन में लगती है. यहां बिंदी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है. जिसको हम यह पोस्टर भेजेंगे, उसे तो हमारी त्रुटि ही नजर आएगी न!”

”तुम्हारी चिंता जायज है, नए वर्ष के लिए समाज को कुछ नया भी तो सिखाना है न! यहां पर बिंदी बिलकुल नहीं लगनी चाहिए. और क्या है?” वनिता ने उसके सहज रहने का उपक्रम करते हुए कहा.

”इस पोस्टर को देखो-
इस नए साल में अपने अंदर की बुराईयों को समाप्त करें,
समाज की बुराइयों को ठीक करने का सकल्प लें.
इसमें एक जगह ‘बुराईयों’ ऐसे लिखा हुआ है, दूसरी जगह ‘बुराइयों’ ऐसे. अब आज के बच्चों को हम क्या सिखाएंगे?”

”यही कि ‘बुराइयों’ ठीक है.” वनिता ने सहमति प्रकट की.

”नए साल के संदेश का एक और नमूना देखो-
नये साल मे नये रंग ,
हर दिल मे भर दे उमंग .
मिलजुल रहे प्यार से ,
सदा रहे हम संग-संग .
हम कितनी बार ब्लॉग लिखकर समझा चुके हैं, कि अर्द्ध विराम और पूर्ण विराम से पहले स्पेस नहीं छोड़ना होता, लेकिन दिल है कि मानना ही नहीं चाहता. अर्द्ध विराम और पूर्ण विराम से पहले स्पेस छोड़ दिया और अर्द्ध विराम और पूर्ण विराम के बाद में स्पेस छोड़ना होता है, वहां नहीं छोड़ा. में के ऊपर बिंदी नहीं लगाई, रहें के ऊपर की बिंदी भी गायब है. युग्म शब्दों के बीच में योजक चिह्न लगना चाहिए, वह भी नहीं है.” अंकिता ने अफसोस जाहिर किया.

”सही कहा, सही संदेश ऐसे होना चाहिए-
नये साल में नये रंग,
हर दिल में भर दें उमंग.
मिल-जुलकर रहें प्यार से,
सदा रहें हम संग-संग.” वनिता ने उसका साथ दिया.

”नया पोस्टर बनाने में उतनी देर नहीं लगती, जितनी पुराने पोस्टर को ठीक करने में.”

”बिलकुल यही बात दर्जी भी कहते हैं-
नया कपड़ा सिलने में उतनी देर नहीं लगती, जितनी पुराने कपड़े को ठीक करने में. चलो इस साल के लिए इतना सबक ही बहुत है, शेष फिर कभी. अब चाय पी लो.” वनिता ने चाय सामने रखते हुए कहा.

”अगले वर्ष को किसने देखा है-
‘काल करे सो आज कर’, शेष बातें कामेंट्स में हो जाएंगी न!”

”पोस्टर सोशल मीडिया का सशक्त माध्यम हैं, उनका सही होना भी बहुत जरूरी है.” वार्तालाप को विराम देते हुए वनिता और अंकिता सही पोस्टर बनाने के अपने काम में लग गईं.

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “पोस्टर

  • लीला तिवानी

    असल में यह सीख हम सबके लिए है. हम जाने-अनजाने, कभी बेख्याली में, कभी मोबाइल के कोई शब्द न लेने के कारण अनेक त्रुटियां कर जाते हैं. पंजाबी, मराठी, बंगाली आदि भाषाओं का व्याकरण कुछ भिन्न होता है. अनेक देशी भाषाओं में ‘श’ को ‘स’ लिखा-बोला जाता है, वहां देश को देस बोलते हैं. ध्यान रखना चाहिए कि हम जब सोशल मीडिया पर लिखते हैं, तो सही लिखें. ऐसा न करने पर आने वाली पीढ़ियां कंफ्यूज हो जाएंगी.

  • लीला तिवानी

    वर्तनी की त्रुटियों में साइट विशेष का भी ध्यान रखना चाहिए. जैसे जय विजय के नियम हैं-
    1.कृपया बोल्ड अक्षरों में न लिखें.
    2.एक पैरा के बाद स्पेस न छोड़ें आदि-आदि.
    ऐसा न करने पर एडीटिंग में दिक्कत आती है.

  • लीला तिवानी

    वर्तनी की त्रुटियों का सुधार किसी भी उम्र में किया जा सकता है, बस तनिक इच्छाशक्ति का विकास हो जाए और मन में लगन लग जाए. कभी-कभी अन्य स्थानीय भाषा-भाषी (पंजाबी, मराठी, बंगाली आदि) लोगों का हिंदी वर्तनी की त्रुटियों में सुधार होना मुश्किल होता है, लेकिन हिंदी भाषा-भाषी का हिंदी वर्तनी की त्रुटियों में सुधार होना कतई मुश्किल नहीं है.

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