लघुकथा: विकलांग कौन ?
कुशाग्र बुद्धि का विक्रम बचपन से ही हर किसी का चहेता था। वह हर कक्षा में प्रथम आता था । उसके माता पिता ने भी उसके लिए अनगिनत सपने देख रखे थे । पर कहते हैं न कि भविष्य में क्या लिखा है यह किसने देखा ? एक दिन स्कूल से आते हुए वह दुर्घटना ग्रस्त हो गया और होश आने पर उसे पता चला कि व्हील-चेयर अब उसकी जीवन भर की साथी बन चुकी है ।
व्हील-चेयर पर बैठा विक्रम, अपने भविष्य की कल्पना कर डर सा गया। असुरक्षा की भावना से उसकी सांसें किसी धौंकनी की तरह चलने लगी। डर तो उसके माता पिता भी गए थे । पर उन्होंने विक्रम को संभाला, उसका सहारा बने और उसको आगे बढ़ने की प्रेरणा दी ….. और उनकी प्रेरणा और मेहनत का ही नतीजा था कि विक्रम आज एक नामी कम्पनी में मैनेजर चुना गया था । बेटे की सफलता से खुश माता पिता ने छोटी सी पार्टी रखी।
बधाई देने के बाद उनका एक पड़ोसी दूसरे से फुसफुसाते हुए बोला ,” चलो अच्छा है कि बेचारे को नौकरी मिल गयी, वरना विकलांगता के साथ उसका जीना मुश्किल हो जाता ।”
आवाज थोड़ी ऊँची होने की वजह से यह बात विक्रम के माता -पिता ने भी सुन ली । विक्रम के पिता जी तो चुप रहे पर माता का दुखी मन से बस इतना ही बोली ,”भाई साहिब, विक्रम तो केवल शारीरक रूप से विकलांग है , पर उनका क्या करें जो मानसिक विकलांग हैं?”
बहुतों के झुके सर उनके मानसिक विकलांग होने की गवाही दे रहे थे ।
अंजु गुप्ता