कहानी: आपरेशन
निर्मला ने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों की सेवा में ही लगाई थी ! सबकी प्यारी और दुलारी निर्मला अम्मा की, घर में ही नहीं बाहर भी तूती बोलती थी । पर किसी ने सच ही कहा है कि समय एक सा नहीं रहता । बुढ़ापा अपने आप में एक बीमारी है । जो निर्मला अम्मा सबकी मदद के लिए सबसे आगे रहती थी , बुढ़ापे ने अब उसी को छोटी-छोटी बातों के लिए दूसरों का मोहताज कर दिया था । बहू- बेटा अब उससे आजिज हो गये थे, बस पोता मोनू ही था जो बिन कुछ बोले अम्मा का ध्यान रखता था ।
मोतियाबिंद हो जाने से निर्मला अम्मा को ठीक से दिखाई भी नहीं दे रहा था। दो – तीन बार दबे शब्दों से उन्होंने बेटे से आँखों के आपरेशन की बात की, जिसे उसने काम की अधिकता का वास्ता देकर, लगभग नजरअंदाज ही कर दिया था ।
कुछ बीते दिनों से बेटे -बहू की निरंतर खुसर-फुसर सुनकर और उनको देख कर चुप हो जाने से, अम्मा को अनिष्ट की आशंका होने लगी थी। कुछ -कुछ समझ भी रहीं थीं… आखिर उसने भी तो दुनिया देखी थी ।
एक दिन बात-बात पर झल्लाने वाली बहू उनके पास आ कर बोली , “अम्मा कल यह आपको आपरेशन करवाने के लिए बड़े शहर मे ले जायेंगे, अब तो खुश हो ?”
सरल ह्रदय निर्मला अम्मा मुस्कुरा दीं । सैंकड़ों दुआओं से अपनी बहू की झोली भरते हुए बोलीं, “भगवान करे अपना मोनू भी तुम्हारी इसी तरह से सेवा करे।”
आशीर्वाद सुन कर उनके बहू – बेटे के दिल में कुछ खटक सा गया । न जाने निर्मला अम्मा के आशीर्वाद का असर था या आशीर्वाद के फलने का डर, अगले दिन अम्मा अपने ही शहर के आंखें बनवाने वाले कैम्प में थीं । शहर जा कर अम्मा तो वृद्धा आश्रम में छोड़ने का विचार बहू – बेटा त्याग चुके थे । लगता था अम्मा की आँखों के आपरेशन के साथ-साथ , उनके बहू – बेटे के मन का भी आपरेशन हो चुका था ।
अंजु गुप्ता