ग़ज़ल
अहसास ख़ुशनुमा पर , काँटों भरा सफ़र है ।
उल्फ़त का रास्ता भी ,कितना ये पुर- ख़तर है ।
तन्हा निकल पड़ा हूँ, कोई न हमसफ़र है ।
सुनसान रास्ता है , जाना मुझे जिधर है ।
घायल है इक़ परिंदा, दुबका है घौंसले में,
आफ़त वहाँ भी आई, कटने लगा शज़र है ।
देखो न आईना तुम, यूँ बारहा सँवर कर,
ठहरा था जो समंदर , उठने लगी लहर है ।
कैसा ये हादसा है, दिखता है सब सलामत ,
टूटा मगर बहुत कुछ, तुमको भी ये ख़बर है ।
लेकर जो आ गया है , तुमको क़रीब मेरे ,
कुछ और है कहाँ ये , जज़्बात का असर है ।
दरकार भी नहीं है ,अल्फ़ाज़ की हमें अब ,
होतीं हैं मौन बातें ,मिलती ये जब नज़र है ।
सोचा ज़रा सा तुमको, अशआर ख़ुद हुए हैं ,
महकी गली है दिल की, महका हुआ प्रखर है ।
— राजेश प्रखर