गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अहसास   ख़ुशनुमा   पर , काँटों  भरा  सफ़र है ।
उल्फ़त  का  रास्ता भी  ,कितना ये पुर- ख़तर है ।
तन्हा   निकल  पड़ा   हूँ,  कोई   न  हमसफ़र है ।
सुनसान   रास्ता    है ,   जाना    मुझे   जिधर है ।
घायल   है   इक़  परिंदा,   दुबका  है  घौंसले में,
आफ़त  वहाँ   भी  आई,  कटने  लगा  शज़र है ।
देखो  न  आईना   तुम, यूँ   बारहा    सँवर  कर,
ठहरा  था  जो   समंदर  , उठने  लगी   लहर है ।
कैसा  ये  हादसा  है, दिखता  है सब  सलामत ,
टूटा  मगर  बहुत  कुछ, तुमको  भी  ये ख़बर है ।
लेकर  जो  आ   गया  है , तुमको   क़रीब  मेरे ,
कुछ  और  है  कहाँ  ये , जज़्बात का असर है ।
दरकार   भी  नहीं  है ,अल्फ़ाज़  की  हमें अब ,
होतीं  हैं  मौन  बातें ,मिलती  ये  जब  नज़र है ।
सोचा  ज़रा  सा तुमको, अशआर  ख़ुद हुए हैं ,
महकी गली है दिल की, महका हुआ प्रखर है ।
— राजेश प्रखर

राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर'

राजेश श्रीवास्तव प्रखर कटनी (म.प्र.)