गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

आस उनसे हम लगा बैठे लोगो।
आग दिल में यूं जला बैठे लोगो।।
इस कदर उनसे मुहब्बत हो गयी।
हम जमाना भी भुला बैठे लोगो।।
याद आयी जब कभी उनकी हमें।
बस यूं ही साहिल पे जा बैठे लोगो।।
जानते थे खत पढ़ा जाता नही।
लिख के खत उनको जला बैठे लोगो।।
हैं वो पत्थर के सनम चाहत कहां।
जानकर सपने सजा बैठे लोगो।।
अब खुदा मेरा करेगा फैसला।
उनके ही दरबार जा बैठें लोगो।।
क्या खता क्या है सजा क्या फैसला।
क्यूं जहां अपना भुला बैठे लोगो।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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