कवितागीत/नवगीत

मन्नत के ताले

मन्नतके ताले

सीमा पर पदस्थ पति की सुरक्षा के लिए पत्नी श्रीकृष्ण से मन्नत माँगते हुए धागे में एक ताला लगाती है कि पति के आने पर उनके साथ ये ताला खोलेगी ।

सुनो हे मोहन ! मूरलीवाले
दीन हीन जन के रखवाले
लगा दिए हैं तेरे आसरे
मन्नत के धागों पर ताले

मन मेरा चिंता में पड़ा है
सीमा पर सिन्दूर खड़ा है
मातृभूमि की रक्षा करने
शत्रु सन्मुख अडिग अड़ा है

चढ़ा रही हूँ मिसरी मखना
श्रद्धा का नैवेद्य है , चखना
इतनी सी है विनती भगवन
सदा सुहागन मुझको रखना

तेरी जोगन मान मनाए
घी के अनथक दीप जलाए
हिय प्राण बस एक प्रार्थना
समरविजय कर साजन आए

तेरी चौखट पर डोलूँगी
पिया को लड्डू में तौलूँगी
उनके ही हाथों से मोहन !
मन्नत का ताला खोलूँगी ।।

उनके ही हाथों से मोहन !
मन्नत का ताला खोलूँगी ।।

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कितने  ताले  खुल ना पाए

आँख से आँसू ढुल ना पाए

जिनके बूते खड़ा हिमालय

वे लड्डू  से कैसे  तुल  जाए

कितने मन्नत भटक रहे हैं
कान्हा को भी खटक रहे हैं
बलिदानों की शौर्य ध्वजा है
ये जो ताले लटक रहे हैं ।।

जय हिन्द

समर नाथ मिश्र
रायपुर