ग़ज़ल
यह दावा है मेरा मैं तुझे याद आता रहूंगा
हवा बनकर सांसों में तेरी समाता रहूंगा
तेरी रूह भी हो जाये बेचैन सुनकर जिसे
लिखकर ग़ज़लें ऐसी मैं अब गाता रहूंगा
सो भी ना सकोगे सुकूं से बिछड़कर मुझसे
यादों से अपनी ऐसे मैं तुझे जगाता रहूंगा
ख़ैरियत तक पूछेंगे लोग मेरी तुझसे ही
एक सवाल बनकर तुझे सताता रहूंगा
तुम बुझा देना मेरी राहों के सारे चराग़ों को
मैं तो जुगनू की तरह जगमगाता रहूंगा
— आलोक कौशिक