ईंटों से घर बना हमारा।
ईंटों से घर बना हमारा।
विद्यालय भी बनता प्यारा।।
मिट्टी को साँचे में भरते।
सुघड़ ईंट का सर्जन करते।।
भट्टे में तप रूप सुधारा।
ईंटों से घर बना हमारा।।
तप कर ईंट लाल हो जाती।
चट्टों पर सजकर सो जाती।।
कहती कैसा रूप निखारा।
ईंटों से घर बना हमारा।।
घर , मकान , होटल बनवाते।
मंज़िल -दर-मंज़िल चुनवाते।।
सड़क,गली,फुटपाथ सहारा।
ईंटों से घर बना हमारा।।
सजा ईंट पर ईंट अनेक ।
बनते नाले , पुलिया , सेत।।
जल , बालू ,सीमेंट सहारा।।
ईंटों से घर बना हमारा।।
ईंट नींव में , ईंट शिखर पर।
जैसा जिसकाभाग्य शुभंकर।
‘शुभम’ सृजन संदेश हमारा।
ईंटों से घर बना हमारा।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’