गज़ल
मेरा दिल अजव प्रेम दर्पण
दिमाग सांचा बशीभूत अर्पण
नेक स्पर्श में हलचल स्पंदन
बोझ जोश में भरा रूखापन.
हर्ष और गम सदा उलझाते
सभी भावों अभिव्यक्ति बंदन.
क्रोध में तन्दूर मन मंथन
रच शांत पाता धर्म निरंजन.
दूध उफान सा उग्र पाता
मिल दिल दिमाग संतुलन.
लिखने लिए न जमीर सौदा
“मैत्री”हासिल हो सभी चंदन ,
प्रशंसा में मन टिकता नहीं
वेग सी कविता हो बनधन .
— रेखा मोहन