बसंतबहार
फिजायें बहक रही हैं
स्पर्श इसकी सुहानी है।
नैनों में हलचल मची है।
पत्तियों ने ली अँगड़ाई ।
कण कण में उष्मा जगे
ऋतुराज का करने अगुआई।
सोयी तृष्णा भी जगे
बसंत ऋतु में बहार छाई।
उजड़े चमन चंचल हुए
वीणा के तार झंकृत हुए
जीवन की संध्याबेला में
माँ शारदे का स्पर्श सुखदायी।
हर पल अहसास दिलाती हैं
बंद कपाट खुल जाते हैं।
सोयी लेखनी थिरक उठी
अरमानों को पंख मिले हैं ।
कभी खुशी कभी गम
पल पल भाव जगाती है
जीवन इक मीठी प्यास है।
रंजोगम में भी जीने की आस है।
— आरती राय