काव्य-विधा मुक्तक की मुक्तता
आप लोग हमारे साथ हाइकु, क्षणिका, गीत, बाल गीत, कविता आदि के सफर में साथ चले हैं, आज मुक्तक की बारी है. आइए जानते हैं काव्य-विधा मुक्तक की मुक्तता, मुक्तक शब्द के अर्थ, परिभाषा के बारे में और देखते हैं मुक्तक के कुछ नायाब उदाहरण. सबसे पहले देखिए हमारा एक नया मुक्तक-
”मुट्ठी बांधे जग में आए थे हम, मोबाइल लेकर घूमते हैं,
मुट्ठी में है जमाना सोचकर, तंज़ करते हुए झूमते हैं,
अभिसार और अभिसारिका का जमाना शायद लद गया,
प्रेमी-प्रेमिका की तस्वीर देखकर, बार-बार मोबाइल को चूमते हैं.”
-लीला तिवानी
मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो. इसमें एक छन्द में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है. कबीर एवं रहीम के दोहे; मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं. हिन्दी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई.
मुक्तक शब्द का अर्थ है ‘अपने आप में सम्पूर्ण’ अथवा ‘अन्य निरपेक्ष वस्तु’ होना. अत: मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें कथा का कोई पूर्वापर संबंध नहीं होता. प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्णत: स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ देने वाला होता है.
आधुनिक युग में हिन्दी के आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मुक्तक पर विचार किया. उनके अनुसार:
”मुक्तक में प्रबंध के समान रस की धारा नहीं रहती, जिसमें कथा-प्रसंग की परिस्थिति में अपने को भूला हुआ पाठक मग्न हो जाता है और हृदय में एक स्थायी प्रभाव ग्रहण करता है. इसमें तो रस के ऐसे छींटे पड़ते हैं, जिनमें हृदय-कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है. यदि प्रबंध एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है. इसी से यह समाजों के लिए अधिक उपयुक्त होता है. इसमें उत्तरोत्तर दृश्यों द्वारा संगठित पूर्ण जीवन या उसके किसी पूर्ण अंग का प्रदर्शन नहीं होता, बल्कि एक रमणीय खण्ड-दृश्य इस प्रकार सहसा सामने ला दिया जाता है कि पाठक या श्रोता कुछ क्षणों के लिए मंत्रमुग्ध सा हो जाता है. इसके लिए कवि को मनोरम वस्तुओं और व्यापारों का एक छोटा स्तवक कल्पित करके उन्हें अत्यंत संक्षिप्त और सशक्त भाषा में प्रदर्शित करना पड़ता है.”
मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें कथा का पूर्वापर संबंध न होते हुए भी त्वरित गति से साधारणीकरण करने की क्षमता होती है.
आजकल मुक्तक प्रायः चार पंक्तियों की कविता को कहते हैं, दोहा दो पंक्तियों का होता है.
कुछ मुक्तक-
1.”चल रहा ये पतझरों का दौर जाएगा ज़रूर
ज़िन्दग़ानी का गुलिस्तां मुस्कुराएगा ज़रूर
उसकी रहमत और ख़ुद के कर्म पर विश्वास रख
मुश्किलों के बाद अच्छा वक्त आएगा ज़रूर.”
2.”प्रेम मीरा की तपस्या है कठिन उपवास है
प्रेम राधा का समर्पण कृष्ण का विश्वास है
प्रेम में होती कहाँ है देह की अनिवार्यता
प्रेम रूहों के मिलन का श्रेष्ठतम अहसास है.”
3.”गर्व से हिंदी में सिखाती हूँ
शान से हिंदी में पढ़ाती हूँ
आजीविका भी है हिंदी से जुड़ी
हिंदी को ओढ़ती–बिछाती हूँ.”
4.”दर्द की शिद्दत का ये आलम रहा
उम्र भर तड़पाया फिर भी कम रहा
आंसुओं से लिख दिया था जिस पे दिल
एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा.”
अब आप समझ ही गए होंगे, कि चार पंक्तियों का मुक्तक अपने आप में एक सम्पूर्ण कविता है. पहले मुक्तक में सुख-दुःख और समय की अस्थिरता का कितना प्रभावी वर्णन किया गया है! दूसरे मुक्तक में बड़ी खूबसूरती से प्रेम को परिभाषित करने की कोशिश की गई है. तीसरे मुक्तक की विशेषता है हिंदी की महानता का कथन और आजीविका से उसका संबंध. चौथे मुक्तक में वियोग श्रंगार की चरम सीमा के दर्शन होते हैं.
मुक्तक भले ही चार पंक्तियों का होता है, लेकिन हर चार पंक्तियां मुक्तक नहीं हो सकतीं. दोहे या शेर की तरह मुक्तक लिखना बहुत मुश्किल नहीं, पर बहुत आसान भी नहीं है.
आइए हम भी मुक्तक लिखने की कोशिश करें. जो भी भाव मन में आए, उसे चार पंक्तियों में चरम सीमा तक पहुंचाएं, प्रबन्धकीयता से मुक्त रहकर भी मुक्तक मन को छूने वाला हो सके. अंत में हमारी तरफ से एक और मुक्तक-
”सूरज फीका लग रहा, कहता अब संभलो,
प्रदूषण ने मुझको घेरा, आदत अपनी बदलो,
वरना ऐसा दिन आएगा, पछताते रह जाओगे,
पर्यावरण भी स्वच्छ बनाओ, मन को स्वच्छ बनाते चलो.”
बसंत पंचमी के परम पावन अवसर पर काव्य की इस विधा पर अपनी कलम की बानगी दिखाइए और मां सरस्वती के वरद हस्त से आशीर्वाद पाइए.
बहुत सुन्दर व उपयोगी जानकारी के लिए धन्यवाद
प्रिय शशांक भाई जी, रचना का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
रंग बहुत-से देखे, बसंती मन भाया,
रंगों का सरताज, बसंती मन भाया,
वीर शहीदों ने भी पहना, चटक बसंती चोला,
देश-प्रेम का रंग, बसंती मन भाया.
लीला तिवानी