धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विशेष सदाबहार कैलेंडर- 149

ख़ामोशी विषय पर विशेष

1.हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी,
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है!

2.खामोशी बयां कर देती है सब कुछ,
जब दिल का रिश्ता जुड़ जाता है किसी से.

3.वो अब हर एक बात का मतलब पूछता है मुझसे “फ़राज़”
कभी जो मेरी ख़ामोशी की तफ्सील लिखा करता था.

4.अजीब शोर मचाने लगे हैं सन्नाटे
ये किस तरह की ख़मोशी हर इक सदा में है.

5.एक उम्र ग़ुज़ारी हैं हमने तुम्हारी ख़ामोशी पढते हुए,
एक उम्र गुज़ार देंगे तुम्हें महसूस करते हुए.

6.ख़ामोशी छुपाती है ऐब और हुनर दोनों,
शख्सियत का अंदाज़ा गुफ्तगू से होता है.

7. कभी सावन के शोर ने मदहोश किया था मौसम,
आज पतझड़ में हर दरख़्त खामोश खड़ा है.

8.शोर तो दुनिया वालों ने मचाया है हमारे कारनामों का,
हमने तो जब भी कुछ किया ख़ामोशी से ही किया है.

9.जब से ये अक्ल जवान हो गयी,
तब से ख़ामोशी ही हमारी जुबान हो गयी.

10.आंखों-आंखों में, उन से बात हो गई,
दिल की मुराद, आंखों में से ही पूरी हो गई,
बड़ा ही अजीब था, उनका नज़रों का झुकाना,
ख़ामोश रह कर भी, उन से इज़हार-ए-मुहब्बत हो गई.

11.मैं तो इसलिए चुप हूं कि, तमाशा न बने,
और तू समझता है मुझे, तुझसे गिला कुछ भी नहीं.

12.एक जमाना था जब मोबाइल गिरता था तो बैटरी बाहर निकल जाती थी,
अब मोबाइल गिरता है तो कलेजा बाहर निकल जाता है,
महंगाई का आलम है, मोबाइल ही बालम है.
सिर्फ़ महंगाई ही क्यों और भी बहुत-से बातें हैं,
मोबाइल चुगली कर देगा किस-किस से हुई मुलाकातें हैं,
किस-किस से हुई बात कहां गुजारी रातें हैं,
घर में खड़ा होगा बवाल जब वो आतें हैं.

13.आँखों के नूर को दिल का उज़ाला बना दो,
सूरत को क्या देखना सीरत को पनाह दो,
राहों की ज़हमतों का सबूत कौन मांग रहा है!
मांगने वाले तो सर्जिकल स्ट्राइक का भी सबूत मांगते हैं.

14.उसकी आँखों में आंसू? बोलती मेरी बंद हो गई,
मेरी खामोशी, साँसें उसकी मंद हो गईं.

15.लफ्ज़ों का कारोबार रास ना आया,
हमारा साथ तो खामोशी ने निभाया.

16.जुबां की खामोशी पर ना जाओ,
राख के नीचे आग होती है.

17.वो भी, मैं भी, इश्क भी,
सब खामोश हो गये धीरे धीरे.

18.चलो खामोशियों की गिरफ्त में चलते हैं,
बातें ज्यादा हुई तो जज्बात खुल जाएंगे.

19.चुभता तो मुझे भी है, तीर की तरह,
मगर खामोश रहता हूँअपनी तकदीर की तरह.

20.बहुत अलग-सा है मेरे दिल का हाल,
एक तेरी खामोशी और मेरे लाखों सवाल.

21.हर कोई परेशान है, मेरी खामोशी से,
और में परेशान हूं अपने अंदर के शोर से.

22.चुप थे तो चल रही थी ज़िंदगी लाजवाब,
खामोशियां बोलने लगी तो बवाल हो गया.

23.खामोशी एक नशा है और आजकल मैं नशे में हूँ.

24.चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है!
लो ख़ामोशी भी शिकायत हो गई.

25.अभिमान नहीं होना चाहिए, कि मुझे किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी,
और यह वहम भी नहीं होना चाहिए, कि सबको मेरी जरूरत पड़ेगी.

26.ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो,
लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है.

27.असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का,
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ.

28.ज़ोर क़िस्मत पे चल नहीं सकता,
ख़ामुशी इख़्तियार करता हूँ.

29.चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है!
लो ख़ामोशी भी शिकायत हो गई.

30.ख़ामोशी में चाहे जितना बेगानापन हो,
लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है.

31.उसकी सच्चाई जब से हमारे पास आई,
हमारे लबों को तब से ख़ामोशी ही रास आई.

प्रस्तुत है पाठकों के और हमारे प्रयास से सुसज्जित विशेष सदाबहार कैलेंडर. कृपया अगले विशेष सदाबहार कैलेंडर के लिए आप अपने अनमोल वचन भेजें. जिन भाइयों-बहिनों ने इस सदाबहार कैलेंडर के लिए अपने सदाबहार सुविचार भेजे हैं, उनका हार्दिक धन्यवाद.

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विशेष सदाबहार कैलेंडर- 149

  • लीला तिवानी

    कभी कभी दिल की बात कहने के जुबां साथ नहीं देती तब ख़ामोशी ही साथ देती हैं, और एक यही ख़ामोशी हैं जिसमे कई राज़ छुपे होते हैं. ख़ामोशी में नाराजगी भी होती हैं और अपनापन भी होता हैं, प्यार का इज़हार भी होता हैं और किसी का तन्हाई में इंतज़ार भी होता हैं.
    हम लबों से कह न पाए उनसे हाल-ए-दिल कभी,
    और वो समझे नहीं ये “ख़ामोशी” क्या चीज़ है

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