भारत में
भारत में पूर्ण सत्य
कोई नहीं लिखता
अगर कभी किसी ने लिख दिया
तो कहीं भी उसका
प्रकाशन नहीं दिखता
यदि पूर्ण सत्य को प्रकाशित करने की
हो गई किसी की हिम्मत
तो लोगों से बर्दाश्त नहीं होता
और फिर चुकानी पड़ती है लेखक को
सच लिखने की कीमत
भारतीयों को मिथ्या प्रशंसा
अत्यंत है भाता
आख़िर करें क्या लेखक भी
यहां पुत्र कुपुत्र होते सर्वथा
माता नहीं कुमाता
:- आलोक कौशिक