प्रीत की रीत ( कविता )
प्रीत की रीत काश सीख पाती
मीरा जैसी प्रीत जगाती
तन-मन की सुधि बिसराऊँ
मीरा के रंग में मैं रंग जाऊँ
इस जग की है रीत निराली
प्रेम बिना जीवन पतझड़ है।
भक्ति की रीत कैसे निभाऊँ
कैसे कोमल मन बहलाऊँ।
मीरा बनकर भजन मैं गाऊँ
श्याम के रंग में मैं रंग जाऊँ।
भक्ति-भाव में होकर बावड़ी
कभी नहीं अपनों को बिसराउँ।
प्रीत के रंग में रंग जाऊँ
ऐसी लगन लगा देना ।
कान्हा कान्हा रटते रटते
नैया पार लगा देना ।
कान्हा की छवि देखूँ सबमें
ऐसी मीरा बना देना।
हे माँ मैं भले ही भूल जाऊँ तुझे
तू कभी मुझे मत बिसरा देना।
— आरती राय