कविता

प्रीत की रीत ( कविता )

प्रीत की रीत काश सीख पाती 

मीरा जैसी प्रीत जगाती

तन-मन की सुधि बिसराऊँ

 मीरा के रंग में मैं रंग जाऊँ

इस जग की है रीत निराली

प्रेम बिना जीवन पतझड़ है।

भक्ति की रीत कैसे निभाऊँ

कैसे कोमल मन बहलाऊँ।

मीरा बनकर भजन मैं गाऊँ
श्याम के रंग में मैं रंग जाऊँ।

भक्ति-भाव में होकर बावड़ी

कभी नहीं अपनों को बिसराउँ।

प्रीत के रंग में रंग जाऊँ
ऐसी लगन लगा देना ।

कान्हा कान्हा रटते रटते
नैया पार लगा देना ।

कान्हा की छवि देखूँ सबमें

ऐसी मीरा बना देना।

हे माँ मैं भले ही भूल जाऊँ तुझे

तू कभी मुझे मत बिसरा देना।

— आरती राय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - [email protected]