गीत
जीत मे भी, हार मे भी, अविचल चलता रहूँगा|
विश्वास का संबल लिये, मंजिलें गढता रहूँगा|
था नही कुछ भी हमारा, जो यहाँ पर खो दिया हो,
पा सकूँ सारा जहां, इस आस मे बढता रहूँगा|
हैं कुछ बाधायें यहाँ, और पग में कंकर चुभ रहे,
हौसलों की डोर थामे, नित सृजन करता रहूंगा|
कौन जीता- कौन हारा, किसका लक्ष्य क्या बना?
क्यों करूँ चिन्ता विगत की, आगत पर ही ध्यान धरूँगा|
कर्म मै खुद ही करूँ और, फिर प्रभु से कामना,
मार्ग मेरा प्रशस्त करें, मैं पर्वतो तक बढ चलूँगा|
हूँ बहुत कृतज्ञ जग मे, दोस्तों के साथ का,
हर मुकाम उनको मिले, आराधना करता रहूंगा|
था नही जिस योग्य, उससे बढकर मुझको मिला,
है कृपा तुम्हारी प्रभु, नित गुणगान करता रहूंगा|
अ कीर्ति वर्द्धन