आधार मेरे सपनों का…
गीत
संजीवनी सी ये पीड़ा।
आधार मेरे सपनों का।।
बाटें खुशियाँ दुगनी हों,
कहते ही दुःख हो आधा।
पीड़ा हो जब अपनी सी,
फिर क्यों न चाहूँ ज्यादा।
क्यों न इनको फिर मन में,
मैं बड़े जतन से पालूँ।
क्यों कहूँ विकलता अपनी,
औ’ इनको कम कर डालूँ।
ये भार नही हैं मन पर,
उपकार मेरे अपनों का।
संजीवनी सी ये पीड़ा।
आधार मेरे सपनों का।।
मन किया तूलिका मैंने,
हर आँसू किया स्याही।
अक्षर और व्याकरण की
भावों संग करी सगाई।
कभी कविता सी बिखरी ये,
कभी ग़ज़ल बनी इतराई।
सब लोग सयाने कहते,
रचना पीड़ा की जाई।
हूँ लिए खज़ाना बैठी,
फिर आज इन्ही रत्नों का।
संजीवनी सी ये पीड़ा।
आधार मेरे सपनों का।।