लघुकथा

48 साल लंबी सड़क

जापानी उपन्यासकार हारुकी मुराकामी के उपन्यास IQ84 का यह वाक्य अत्यंत प्रसिद्ध है: “जहाँ रोशनी है, वहाँ परछाई होगी ही, जहाँ परछाई है वहाँ रोशनी भी अवश्य होगी. रोशनी के बगैर परछाई नहीं होती और परछाई के बगैर रोशनी नहीं….”

रेडियो पर यह वाक्य सुनते ही उसकी रोशनी का झरोखा खुल गया.

झरोखे से सबसे पहला दृश्य 9 जनवरी 1972, रविवार का दिन- ”मुबारक हो, बिटिया भाई लाई है.” सबके चेहरे खिले-खिले. अस्पताल के पलंग पर बगल में नवजात शिशु को देखकर उसका चेहरा भी खिल गया. उसने बेटी को बहुत प्यार किया.

”ममा SSSS” पहली बार बेटे ने कहा था, उसने बलैयां ली थीं.

”गिल गयाSSSS….” तोतली जबान से बेटा बोला था.

”अले ले ले लेSSSS, मेला लाजा बेता गिल गयाSSSS, कोई बात नहीं, गिल-गिलकल ही तो बच्चा बला बनेगा न!” वह भी तोतली बन गई थी.

”अच्छा, झुंझना नहीं चाहिए, कटोरी-चम्मच चाहिए?” उसने कटोरी-चम्मच बजाकर दिखाया था.

”ममा, आज सुबह आपने जो नई कमीज सिली थी, कुत्ते ने फाड़ दी, मैंने सोए हुए कुत्ते के कान में तीला डाल दिया था.” वह उसे लेकर पति के साथ झट से इमर्जैंसी डिस्पेंसरी भागी थी.

”मैं इस घड़ी को खोलकर देख लूं, फिर बंद कर दूंगा!” वह इंजीनियर बनने को आतुर जो था. पुरजा-पुरजा घड़ी को बंद करना छोटे-से बच्चे के बस का कहां था! उसने घड़ी को एक पॉलीथिन में हमेशा के लिए कैद कर लिया.

दिन बदलते-बदलते दृश्य भी बदलते चले गए थे. सूर्योदय व सूर्यास्त के समय बड़ी होती हुई परछाइयों की तरह बेटा भी बड़ा हो गया.

इंजीनियर बनकर अक्सर टूर पर विदेश जाना होता था, होते-होते विदेशी हो गया.

उसकी शादी के ऐलबम बने, उसके बच्चों की शरारतों के वीडियो बने, बच्चों की उपलब्धियों के बैजों से कोट भरने लगे.

बेटे के जन्मदिन पर सुबह-सुबह हलवा बनाते-बनाते उसने 48 साल लंबी सड़क का सफर तय कर लिया था.
9.1.2020

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “48 साल लंबी सड़क

  • लीला तिवानी

    एक्स्ट्रा लीप डे यानी 30 फरवरी
    अब तक आप लीप डे यानी 29 फरवरी और लीप ईयर के बारे में तो सब समझ चुके होंगे, लेकिन क्या आप एक्स्ट्रा लीप डे के बारे में जानते हैं। एक्स्ट्रा लीप डे का मतलब है 30 फरवरी। भारत में तो 30 फरवरी कभी नहीं आती, लेकिन स्वीडन और फिनलैंड में 1712 में एक्स्ट्रा लीप डे हुआ था। दरअसल, ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि उनका जूलियन कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर यानी हमारे सामान्य कैलेंड से मेल खा सके। हालांकि, वहां अभी भी एक जाति (Hobbits) के लोग हैं जो हर साल 30 फरवरी मनाते हैं।

  • लीला तिवानी

    यह लघुकथा 9.1.2020 को लिखकर लघुकथा मंच को भेजनी थी. उस दिन बेटे राजेंद्र का जन्मदिन भी था. अतः हमारी कलम से यही लघुकथा निःसृत हुई.
    इस कथा पर प्रसिद्ध लेखिका मंजुला डुसी की प्रतिक्रिया-
    ”आपकी शैली कमाल की होती है ..खूबसूरत रचना”

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