भरम या दोस्ती…
भरम या दोस्ती दुआ फ़लसफ़ा ही हुआ।
हमें तो बारहां यकीन इश्क़ का ही हुआ।।
मन्ज़िलों पे था तेरी नाम किसी और का।
ताउम्र को तेरी खातिर मैं रास्ता ही हुआ।
मुद्दतों राह तकी उसकी मेंरी वफाओं ने।
जो न इंसान हो सका जो न खुदा ही हुआ।
जहाँ जा कर तेरी यादों की जद से दूर रहूँ।
न मिली मय कोई ऐसी न मयकदा ही हुआ।।
जिस एक पल था मैं डूबा शख्सियत में तेरी।
उस एक पल से मेरा नाम गुमशुदा ही हुआ।।
हो एक छोर पे तुम दूजे पर जहाँ सारा।
तुम्हे मिलूँगा तुम्हारी तरफ झुका ही हुआ।।