मुक्तक/दोहा

होली का त्यौहार

अबके फागुन यूँ करो,मिले सभी का साथ ।
जला बैर की होलिका, गल डालो सब हाथ ।।१।।
ढीठ छोरियां कर रही ,पानी की बरसात।
नुक्कड़- नुक्कड़ बावरे ,भिगा रहे हैं गात ।।२।।
घर घर आँगन में खिले ,फूल अबीर गुलाल ।
ऐसी होली प्रेम की ,आये सालों साल ।।३।।
विविध रंग ले आ गया ,होली का त्यौहार ।
हौले खेलो रंग से ,मन मेरा सुकुमार ।।५।।
धरा सजी है रंग से ,चलती मस्त बयार ।
रँगीले से फागुन का , सब करते मनुहार ।।६।।
ढोल नगाड़े बज रहे ,छिटके रंग गुलाल ।
 चुपके मेरे गाल भी ,श्याम कर गए लाल ।।७।।
पिचकारी भर श्याम ने ,चुनरी कर दी लाल ।
खेलो सूखे रंग से ,मलो अबीर गुलाल ।।८।।
— रीना गोयल 

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर