कविता

ज़हर (कविता )

प्रकृति को जननी
हम कहते हैं फिर भी
उसकी पीड़ा अनदेखी करते हैं।
क्यों बेबस लाचार हुए
शिक्षा का दंभ भरनेवाले
सारे तंत्र बेकार हुए।
प्रकृति अपना संतुलन
स्वयं करती है।
सदियों से प्लेग
महामारी एवं दैवी प्रकोप से
ऐसी बातें भूलकर
हम बस जीये जा रहे हैं
जहरीली हवाओं को
रोकने की कोशिश में
कृत्रिम मास्क लगा रहे हैं।
क्यों नहीं हवाओं की
शुद्धि चाहते
शुद्धता के प्राकृतिक
तरीकों को अपना कर
जन जीवन हरियाली लाते ?
सात समंदर पार
मानव ही नहीं महामारी
भी आती है , यह प्रकृति
हमें चींख चींख कर
बतलाती है।

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - [email protected]