अपना आसमां
आज माहम को अपना आसमां मिल गया था. उसकी गीतों की किताब छप गई थी और कवि सम्मेलनों में उसकी धाक जम गई थी. उसे सातवीं कक्षा का एक किस्सा याद आ रहा था.
क्षेत्रीय गीत प्रतियोगिता के लिए उसने ही एक गीत लिखा था और संगीत से भी सजाया था, खुश होकर संगीत अध्यापिका ने उसे ही छात्रों का चुनाव करने और उनको अभ्यास करवाने की जिम्मेदारी सौंप दी थी. मजे की बात यह थी, कि अधिकतर छात्र 9वीं कक्षा के भैय्या थे. उन्होंने कहा था- ”माहम, इस समय आप हमारे गुरु हैं, हमें भैय्या कहकर नहीं, नाम से ही संबोधित कीजिए.”
प्रतियोगिता के दिन संगीत अध्यापिका स्कूल में उपस्थित नहीं हो पाई थीं, इसलिए माहम ही उन्हें ले गया था और प्रथम पुरस्कार की ट्रॉफी के साथ वापिस आया था. प्रतियोगिता के परिणाम के बाद छात्रों ने ही निर्णायकों को बताया था, कि इस गीत के निर्माता-निर्देशक-संगीत संयोजक सब माहिम ही हैं. निर्णायकों ने माहम की कला की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी.
अकस्मात उसकी यादों का झरोखा उसके नामकरण पर खुल गया था.
पूर्णचंद्र के दिन उसका जन्म हुआ था और पंडित जी ने ‘म’ से नाम रखने को कहा था. बुआ प्रीति ने उसका नाम ‘माहम’ रखने का सुझाव दिया.
”माहम का अर्थ? शब्द तो अरबी का लग रहा है!” किसी ने पूछा.
”जी, शब्द भले ही अरबी का लगे, पर इसका अर्थ है पूर्णचंद्र यानी खूबसूरत चंद्रमा.”
”पूर्णचंद्र वाले दिन ही इसका जन्म हुआ था, खूबसूरत कलाओं से सम्पन्न होगा यह बच्चा. माहम नाम ठीक रहेगा.” पंडित जी ने समर्थन करते हुए कहा था.
सचमुच खूबसूरत कलाओं और अनेक वाद्य-यंत्रों ने उसे अपने साये में रखा था.
पूर्णचंद्र को अभी तक अपने आसमां की तलाश थी. आइ.टी. इंजिनियर माहम को आज अपना आसमां भी मिल गया था.
प्रतिभा और लगन के साथ अवस्र भी मिलते जाएं और प्रोत्साहन भी, तो माहम जैसी प्रतिभाएं अपने नाम के साथ-साथ अपने और अपने देश का नाम भी सार्थक कर सकती हैं. यही है नवयुग का आह्वान.