(छंद मुक्त कविता ) क्या हो गया है हमें !
क्या हो गया है हमें, कभी हम ऐसे तो न थे
अनजान मेहमानों को भी, भगवान मानते थे l
भारत भूमि बना वतन, हर मुल्क के आगंतुक का
जो भी अपना मुल्क छोड़कर, यहाँ बसना चाहा l
धर्म-गुरुओं ने पढ़ाया था, प्रेम का पाठ यही हमें
निस्वार्थ होकर खुद जिओ, औरों को भी दे जीने l
इस गरिमा को छोड़कर, धर्मगुरु क्यों स्वार्थी बने
क्यों नहीं जीने देते, इस मुल्क में मिलजुलकर हमें ?
टूट गया भाईचारा,सद्भावनाओं का नहीं कोई निशाने
बन्दुक–पिस्तौल से लगा रहे एक दुसरे पर निशाने l
धर्मों के गुरुओं की वाणी में, नहीं है अब स्नेह-प्रेम
घृणा,भेद-भाव,निंदा की भाषा से, हो गया उनका प्रेम l
भ्रमित हैं, सहमे हुए हैं सारे लोग अपने ही घरों में
न जाने कब क्या हो जाय, घातक हो कौन से लम्हे l
खुद ही एकत्र कर रखा है मौत के सारे सामान
पीछे नहीं रहना चाहता है दुश्मनी निभाने में l
भगवान ने बनाया सबको, करते प्रेम सबसे समान
ठेकेदारों ! तुम भी मान लो, सब लोग हैं एक सामान l
कालीपद ‘प्रसाद’