कवितापद्य साहित्य

(छंद मुक्त कविता ) क्या हो गया है हमें !

क्या हो गया है हमें, कभी हम ऐसे तो न थे
अनजान मेहमानों को भी, भगवान मानते थे l
भारत भूमि बना वतन, हर मुल्क के आगंतुक का
जो भी अपना मुल्क छोड़कर, यहाँ बसना चाहा l
धर्म-गुरुओं ने पढ़ाया था, प्रेम का पाठ यही हमें
निस्वार्थ होकर खुद जिओ, औरों को भी दे जीने l
इस गरिमा को छोड़कर, धर्मगुरु क्यों स्वार्थी बने
क्यों नहीं जीने देते, इस मुल्क में मिलजुलकर हमें ?
टूट गया भाईचारा,सद्भावनाओं का नहीं कोई निशाने
बन्दुक–पिस्तौल से लगा रहे एक दुसरे पर निशाने l
धर्मों के गुरुओं की वाणी में, नहीं है अब स्नेह-प्रेम
घृणा,भेद-भाव,निंदा की भाषा से, हो गया उनका प्रेम l
भ्रमित हैं, सहमे हुए हैं सारे लोग अपने ही घरों में
न जाने कब क्या हो जाय, घातक हो कौन से लम्हे l
खुद ही एकत्र कर रखा है मौत के सारे सामान
पीछे नहीं रहना चाहता है दुश्मनी निभाने में l
भगवान ने बनाया सबको, करते प्रेम सबसे समान
ठेकेदारों ! तुम भी मान लो, सब लोग हैं एक सामान l

कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !