कविता

मेरा संकल्प

कितनी कोशिश की है उसने, मुझको रोज़ गिराने की;

मैं ने भी संकल्प लिया है, नित आगे बढ़ते जाना है।

ढील दी है आख़िर कितनी, मैं ने अपने सपनों को?
मंज़िल का कोई ठौर नहीं है, पीछे सारा ज़माना है।

हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, इस देश में कैसे मुद्दे हैं?
आती-जाती सरकारें हैं, फिर मीडिया क्यों बेगाना है?

झुकना सीखा है न हमने, रक्षक देश के सैनिक हैं;
मानव समझ करते हैं नसीहत, हम से नहीं टकराना है।

सियासत अपनी न चमकाओ, संसद में ऐ रहने वालो!
कितने पहले चले गये हैं; तुमको भी कल जाना है।

रंग-बिरंगे, हरे-केसरी, फूलों से महके यह गुलशन;
जाति-पाँति को छोड़ो यारो, यह तो चुनावी तराना है।

दिवाली पर दीप जलायें और सब मिलें ईद पर खूब गले;

‘जहान’ मानवता का यह पैग़ाम, जन-जन तक पहुंचाना है।

— मो. जहाँगीर ‘जहान’

मो. जहाँगीर 'जहान'

जन्म तारीख : 06-07-1993. जन्म भूमि : ग्राम हाफ़िज़ गंज, जिला बरेली, उत्तर प्रदेश. शिक्षा : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में परास्नातक और वर्तमान में यहीं से कथा साहित्य में शोध (Ph. D.) कर रहा हूँ। शौक : लिखना और पढ़ना.