कविता

अवनति

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ, पत्रकारिता;
चाटुकारिता में गिर गया, अब भर-भरा।

सुरक्षा कवच है जो, जनतंत्र का;
गोलियाँ वह भी अब, बरसा रहा।

न्याय की तलवार जिसके हाथ है;
पंगु होकर, वह भी चिल्ला रहा।

सदन की गरिमा भी तार-तार है;
दौर चल पड़ा आरोप-प्रत्यारोप का।

उस पर भी छाया है, सत्ता का नशा;
शहर जल रहे हैं लेकिन, उसका क्या?

बलात्कारी, भ्रष्टाचारी जो भी हैं इस देश में;
फूल और मालाओं से सम्मान उनका हो रहा।

है, जन-मानस हिंदू-मुस्लिम में उलझा हुआ;
‘जहान’ कैसे हो रहा विकास हमारे देश का?

— मो. जहाँगीर ‘जहान’ 

मो. जहाँगीर 'जहान'

जन्म तारीख : 06-07-1993. जन्म भूमि : ग्राम हाफ़िज़ गंज, जिला बरेली, उत्तर प्रदेश. शिक्षा : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में परास्नातक और वर्तमान में यहीं से कथा साहित्य में शोध (Ph. D.) कर रहा हूँ। शौक : लिखना और पढ़ना.