यादों के झरोखे से-17
विश्व जल दिवस 22 मार्च पर विशेष
पानी बचाएं, आने वाला कल सुरक्षित बनाएं
March 25, 2017, 3:03 AM IST लीला तिवानी in रसलीला | देश-दुनिया
पानी जीवनदाता है. पानी हमारी ज़िंदगी के लिए कितना अहम है यह तो हम सभी महसूस करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पानी के बगैर हमारी ज़िंदगी कितनी दूर तक चल सकती है? असल में समझते सभी हैं, पर इसकी कद्र और बचाने के उपाय सब लोग नहीं करते. बहुत पहले हमने छोटे बच्चों को पानी की अहमियत बताने-सिखाने के लिए एक बाल-कविता लिखी थी-
”पानी जीवनदाता है
खेती खूब कराता है
पानी पी हम प्यास बुझाते
पानी से बर्तन मंजवाते
कपड़े धोते पानी से
खूब नहाते पानी से
पानी से घर को धुलवाते
आग बुझाते पानी से.”
यों तो पानी की अहमियत जानने वाले हर दिन जल दिवस मनाते हैं, पर 22 मार्च विश्व जल दिवस मनाया जाता है. पानी की अहमियत का एक मंज़र देखिए इन पंक्तियों में-
”कितना घाटा उठा चुके हैं
हम अपनी मनमानी में
नहीं जबलपुर में है पानी
न ही अब बड़वानी में.”
पानी पर कविता लिखना भी कोई आसान काम नहीं है, इसके लिए मन में सच्चाई चाहिए-
”कितना निर्मल-तरल मन चाहिए
लिखने के लिए पानी पर कविता
कवि के भीतर
पानी भी होना चाहिए पूरम्पूर
पानी पर कविता लिखने के लिए
पानी की हर हलचल पर
लगाना होता है पूरा आँख-कान
जुबान को पथरा (ने) नहीं देना
कवि के लिए सतत चुनौती है
प्यास के भूगोल से तय होती है
पानी की कविता की गहराई
पानी से ही पता चलता है
कि पानी की कविता
कहाँ महीन-तरल है
और कहाँ है पानी की ही तरह
दुर्धर्ष!
पानी की कविता
एक ख़ास तरह के
जबान-ए-आब से बनती है!”
बात यह नहीं है, कि धरती पर पानी की कमी है. पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है, जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नहीं है. समुद्र, महासागर, नदियों तथा नालों का जल मिलाकर धरती का दो तिहाई (2/3) भाग यानी 75 प्रतिशत जल है. एक समय ऐसा भी था, कि पीने के पानी की कमी कतई नहीं थी और पानी के लिए कोई शुल्क नहीं देना पड़ता था. हर निःशुल्क चीज़ की तरह हमने पानी की कद्र नहीं की, लिहाज़ा अब यह हालत है-
”ढेर-ढेर पानी मिलता था
सबको कौड़ी-कानी में
अब तो पानी मोल बिक रहा
पैसा बहता पानी में.”
हमारी गफलत और पानी की बेकद्री के कारण आज यह हालत है-
”प्यासा जंगल, प्यासा गांव
जलती धरती, झुलसे पांव
मांझी के कंधे पे बोझा भारी
सुनता है नदियों का बहता पानी.”
एक एक बूंद पानी की अहमियत समझनी हो, तो देबाशीष घोष से सीखें. पेशे से ये सरकारी अधिकारी और इनका शौक है रास्ते में टपकते नल की मरम्मत करना. रास्तों पर चलते वक्त जब भी उन्हें कोई टपकता नल दिखता है, तो वह उसको ठीक करने में लग जाते हैं. वह पेड़-पौधे लगाने में सक्रिय रहने के साथ ही तालाब साफ कराने जैसे काम में भी शामिल रहते हैं. देबाशीष का कहना है, ‘पानी की जितनी कमी है उससे ज्यादा पानी बर्बाद किया जा रहा है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है, कि आने वाले वक्त में लोग तेल के लिए नहीं बल्कि पानी के लिए लड़ेंगे. यह हमारी धरती है और हमें ही अपना घर बचाना होगा. अगर मैं आज पानी बचाता हूं तो कल मेरे बच्चे उसके लिए परेशान नहीं होंगे. अगर हमारे हाथ से खून बहने लगे तो हम उसे रोकने का उपाय करते हैं, लेकिन जब हमें सड़क पर कोई टोटी खुली हुई दिखती है तो हम उसे बंद करने का प्रयास क्यों नहीं करते?’
आइए जानें पानी की बचत के कुछ आसान उपाय-
जब सप्लाई से पानी आ रहा होता है तब आवश्यकता अनुसार पानी भरने के बाद नल को बंद कर दें, ताकि पानी व्यर्थ न जाए.
आपको जितनी आवश्यकता हो उतने ही जल का उपयोग करें.
आपके घर में पानी का रिसाव न हो यह सुनिश्चित करें.
पानी के नलों को इस्तेमाल करने के बाद बंद रखें.
मंजन करते समय नल को बंद रखें तथा आवश्यकता होने पर ही खोलें.
नहाने के लिए अधिक जल को व्यर्थ न करें, संभव हो तो फव्वारे के स्थान पर बाल्टी और टब आदि में पानी भर कर इस्तेमाल करें.
ऐसी वाशिंग मशीन का इस्तेमाल करें, जिससे अधिक जल की खपत न होती हो.
खाद्य सामग्री, बर्तनों तथा कपड़ों को धोते समय नलों को खुला न छोड़ें.
जल को नाली में बिल्कुल न बहाएं बल्कि इसे अन्य उपयोगों जैसे – पौधों अथवा बगीचे को सींचने अथवा सफाई इत्यादि में लाएं.
सब्जियों तथा फलों को धोने में उपयोग किए गए जल को फूलों तथा सजावटी पौधों के गमलों को सींचने में किया जा सकता है.
पानी की बोतल के आखिर में बचे हुए जल को फेंकें नहीं, बल्कि इसका पौधों को सींचने में उपयोग करें. बच्चों में भी ऐसी ही आदत विकसित करें.
पानी के हौज को खुला न छोड़ें.
तालाबों, नदियों अथवा समुद्र में कूड़ा न फेंकें.
जिस फिल्टर में आप पानी पीने के लिए साफ करते हैं, उसे नियमित तौर पर साफ करते रहें. यदि इलैक्ट्रिक फिल्टर है तो उसे कंपनी द्वारा बताए गए तरीके से ही साफ रखें और ध्यान दें कि वह कभी ओवरफ्लो न हो.
घर के साथ-साथ सार्वजनिक नलों आदि पर भी ध्यान दें, यदि वह बह रहे हैं तो इनसे भी पानी व्यर्थ होता है.
पानी की बचत पर हमारे लिखे एक ब्लॉग के कामेंट में एक पाठक इंद्रेश उनियाल भाई, जो एक अच्छे ब्लॉगर भी हैं, ने लिखा था-
”मैंने अपने टॉइलेट फ्लश की टंकी में एक ईंट डाल दी है, जिससे हर बार फ्लश चलाने पर पानी उतना ही कम लगता है.”
हम पानी की एक-एक बूंद को संभालकर खर्च करते हैं, ताकि हमारा आने वाला कल सुरक्षित बन सके और हमारी आने वाली पीढ़ियों को पानी की सौगात मिल सके. आप भी कामेंट्स में अपने-अपने अनुभव और उपाय लिख सकते हैं.
चलते-चलते
हम आपको पानी से संबंधित एक अनोखी खबर सुनाते चलते हैं-
यहां पानी को साक्षी मानकर कर दी जाती है भाई-बहन की शादी
आदिवासी समाज की अनोखी परंपराओं के बारे में तो हम सब जानते ही हैं. छत्तीसगढ़ में बस्तर की कांगेरघाटी के इर्द-गिर्द बसे हुए धुरवा समाज में ऐसी ही एक अनोखी प्रथा निभायी जाती है. यहां भाई-बहन की आपस में शादी कर दी जाती है.
यहां बेटे-बेटियों की शादी में अग्नि को नहीं बल्कि पानी को साक्षी मान कर विवाह रचाया जाता है. धुरवा समाज में बेटी की शादी उसके ममेरे या फुफेरे भाई-बहन से कर दी जाती है. अगर कोई शादी करने से मना करता है तो उससे जुर्माना भी वसूला जाता है.
यहां लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के की आयु 21 वर्ष होती है, हालांकि अब धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं.
22 मार्च विश्व जल दिवस का संदेश-
”कितना घाटा उठा चुके हैं
हम अपनी मनमानी में
नहीं जबलपुर में है पानी
न ही अब बड़वानी में.”
संकल्प और संयम से जल का प्रयोग करें, दुरुपयोग नहीं.