ग़ज़ल
भरोसा था तुझे पहले रहा वो अब नहीं शायद,
तेरी उम्मीद पर मैं ही खरा उतरा नहीं शायद,
तेरे एहसास की गर्मी में तो कोई कमी ना थी,
पर मैं ही था पत्थरदिल तभी पिघला नहीं शायद,
दीवानों की तरह तुमने मुझे बेइंतिहा चाहा,
तुम्हारा प्यार लेकिन मैं कभी समझा नहीं शायद,
दुनिया से तो क्या उम्मीद रखता दिलनवाज़ी की,
मेरी मजबूरियों को तुमने भी देखा नहीं शायद,
तेरे दिल से भी रुखसत हो गया बेआबरू होकर,
मुसाफिर था मेरी किस्मत में घर ही था नहीं शायद,
— भरत मल्होत्रा