गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

चलते चलते किस युग तक आये हम है,
जिधर देखो नफरत का माहौल गरम है।।

हर बात दुसरे को यहां नागवार गुजरती है,
कैसा पड़ा है परदा न जाने कैसी भरम है।।

लड़ लेना विचारों से कल जो ज़िदगी रही,
अहम है जान छोड़ दो जो मन का अहम है।।

अच्छा न कह सको तो जहर भी न उगलो तुम
संकट का समय है करो गर कुछ भी शरम है ।।

माना उसूल ठीक है मगर इंसानियत बड़ी है ,
इंसान बनना पहले हर इंसान का धरम है।।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)