गीतिका
चलते चलते किस युग तक आये हम है,
जिधर देखो नफरत का माहौल गरम है।।
हर बात दुसरे को यहां नागवार गुजरती है,
कैसा पड़ा है परदा न जाने कैसी भरम है।।
लड़ लेना विचारों से कल जो ज़िदगी रही,
अहम है जान छोड़ दो जो मन का अहम है।।
अच्छा न कह सको तो जहर भी न उगलो तुम
संकट का समय है करो गर कुछ भी शरम है ।।
माना उसूल ठीक है मगर इंसानियत बड़ी है ,
इंसान बनना पहले हर इंसान का धरम है।।
— साधना सिंह