मरकज के जमाती
मौत खड़ी है सर पर लेकिन भान नहीं कुछ इसका है,
बचना इससे इनको कैसे, ज्ञान नहीं कुछ इसका है।
चरमपंथ है, कट्टरपंथ है, धर्म का जाहिलपन इनमें,
बनी रहे आपस में दूरी, ध्यान नहीं कुछ इसका है।।
दुनिया जिससे छुप रही, उसको गले लगाने वाले,
गले लगाकर प्रेम-भाव से, आपस में बतियाने वाले।
समझ सके ना विकट परिस्थिति, ना मृत्यु का नर्तन,
मरकज में मिलकर बैठे, धीमी मौत लुटाने वाले।।
स्वास्थ्य विभाग पर थूक रहे, जहां तहां ये मूत रहे,
मार-पीट कर पुलिस वालों से, वर्दी पर थूक रहे।
नंगई पर हो उतारू महिला डाक्टर नर्स समक्ष-
नंगे हो, अभद्र भाषा कह, आगे पीछे कूद रहे।।
जाहिलपन से इनकी यारी, मौत इन्हें लगती है प्यारी,
समझाने से समझ रहे ना, मरने की इनकी तैयारी।
तबलीगी जमात वालों ने, डरा दिया है भारत को,
डाक्टर, नर्स, पुलिस वालों से मारपीट कर देते गारी।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला सुलतानपुर
उत्तर प्रदेश
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