मुक्तक
सृजन है धेय जीवन का, यूँ ज़ाया जा नहीं सकता ।
जो गुज़रा वक़्त कांटो में,वो लाया जा नहीं सकता ।।
मन: रुपी ये चट्टाने, कठिन, दुर्गम भी होती हैं ।
गुलिस्ताँ सहज उन पर भी, उगाया जा नहीं सकता ।।
व्यस्त रहने वाले सभी, रास्ते पर आ रहे हैं ।
घरों पर जान तजने वाले भी घबरा रहे हैं ।।
मिले ना जो कभी गूगल में सर्च करने पर भी ।
समस्त बैरागी आजकल फेसबुक चला रहे हैं ।।
— क्रांति पांडेय “दीपक्रांति”
आपकी रचनाएं बहुत ही खूबसूरत है