कहानी

जनता कर्फ्यू

कोरोना विषाणु की भयावहता के चलते प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू की घोषणा कर दी थी। डॉक्टर, पुलिस तथा सेना के जवान तत्परता से अपनी ड्यूटी कर रहे थे। किसी को भी अनावश्यक घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। रोजमर्रा की जरूरत की सभी वस्तुएं जैसे – राशन, दूध,फल और सब्जी मुहैया कराई जा रही थी।मेडिकल स्टोर भी खुले रखने के निर्देश थे। किंतु इसके लिए भी समय सीमा निर्धारित कर दी गई थी। यह समस्त प्रयास विषाणु जनित बीमारी को महामारी का रूप धारण करने से रोकने के लिए किए जा रहे थे । सभी सरकारी, अर्ध- सरकारी, निजी कर्मचारियों और दिहाड़ी मजदूरों की छुट्टी कर दी गई थी और जो जहां थे ,वहीं पर रहने के निर्देश दिए गए थे। इसी के चलते इन दिनों कमला भी काम पर नहीं जा रही थी। वह कॉलोनी के घरों में झाड़ू -, बर्तन आदि का काम किया करती थी।उसका पति मुंबई में दिहाड़ी मजदूर था ।रेल और बस सुविधा बंद हो जाने के कारण वह घर नहीं लौट सका था। यद्यपि कमला कोरोना के विषय में ज्यादा कुछ नहीं समझ पा रही थी किंतु उसे इस बात का तो आभास हो गया था कि जरूर कोई खतरनाक रोग है नहीं तो उसकी मालकिन तो बीमारी में भी उसे छुट्टी नहीं लेने देती थी।
कमला का छह वर्ष का बेटा राजू पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहा था। पति ने जो पैसे भेजे थे वह इलाज और घर खर्च के लिए अपर्याप्त थे। महीना पूरा न होने के कारण उसे तनख्वाह नहीं मिल पाई थी। यद्धपि उसने बच्चे की बीमारी का उल्लेख करके पैसों की मांग की थी किन्तु मालकिन ने साफ़ मना कर दिया था।उसके बाद अन्य घरों में मांगने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई। राजू तेज बुखार के कारण रात भर ठीक से नहीं सो सका था । वह बहुत परेशान थी कि क्या करे? औषधि भंडार (मेडिकल स्टोर) से को दवा लाई थी उससे भी आराम नहीं हो रहा था। लगातार उल्टी के कारण हालत गंभीर हो रही थी इसलिए उसने अस्पताल जाने का निर्णय लिया। गोद में बेसुध बेटे को लिए वह पैदल ही निकल पड़ी। जिन सड़कों पर वाहनों की आवाजाही के चलते पैदल चलना दूभर हो जाता था , वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। संक्रमण के भय और लॉकडाउन की घोषणा के चलते लोग अपने-अपने घरों में सुरक्षित थे। हां, जगह-जगह पर पुलिस और सेना के जवान मुस्तैदी से अपना काम कर रहे थे। वह डरते डरते आगे बढ़ रही थी कि तभी उसके कानों में आवाज पड़ी,”ए रुको कहां जा रही हो?”देखा तो सामने पुलिस वाले बड़े साहब खड़े थे।नमस्ते करते हुए उसने अपना दुखड़ा सुनाया और  बेटे की तबीयत की दुहाई देकर जाने देने की विनती करने लगी।उसकी मनोस्थिति और बच्चे की हालत को देखते हुए उसे जाने दिया।यह सब करने में ही काफी समय बीत गया।
कमला के घर से अस्पताल काफी दूर था और दो दिनों से उसने ढंग से कुछ खाया पिया भी नहीं था।फिर भी विधाता ने जाने कौन सी ताकत उसके कदमों में भर दी थी कि वह बेटे को लिए तेजी से बढ़ी का रही थी।अस्पताल पहुंची तो देखा कि अफरा तफरी मची हुई थी।बड़ी संख्या में संक्रमित लोग लाए जा रहे थे।सामान्य मरीजों को देखने की तो जैसे फुर्सत ही नहीं थी। बेटे को जमीन पर ही लिटाकर वह बदहवास सी इधर उधर चक्कर लगा रही थी किन्तु कोई उसके बेटे को देखने को तैयार नहीं था।उसकी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।बेटे के सूखे होंठ, मुंदी आंखे और लगभग निष्प्राण हो रहे शरीर के पास सिर पर हाथ रख कर बैठ गई।तभी सामने से आते किशन के रूप में उसे उम्मीद की किरण  दिखाई दी।किशन उसी के मोहल्ले का रहने वाला था जो अस्पताल में वार्ड बॉय का काम करता था।वह दौड़कर उसके पैरों पर गिर पड़ी और मदद की गुहार लगाने लगी।किशन ने उसे तसल्ली देते हुए उठाया और उसके बेटे को गोद में लेकर ओ पी डी की ओर लपका।सभी डॉक्टर्स  संक्रामक रोगियों को देखने में लगे थे।बड़ी मुश्किल से एक डॉक्टर उसके बेटे को देखने के लिए तैयार हुए।कमला को लगा कि डॉक्टर का रूप धारण कर साक्षात भगवान उसके बेटे को बचाने अा गए हैं।राजू को बिस्तर पर लिटाकर किशन,कमला को ढाढस बंधाने लगा और डॉक्टर राजू का चेक अप करने लगे।इस दौरान डॉक्टर के चेहरे पर उभरते भाव किसी अनिष्ट की ओर संकेत कर रहे थे और हुआ भी वही।इलाज शुरू करने में काफी देर हो चुकी थी।राजू के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।कमला की आंख का तारा जनता कर्फ्यू की भेंट चढ़ गया था।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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