“अरे तुम कौन हो” आहट सुन ब्रह्मांड ने उत्सुकता से पूछा ।
“मैं परिष्कृति की पदचाप हूँ।”
“तो क्या करना चाहती हो एक नज़र में तो तुम विनाशलीला सी नज़र आती हो।” ब्रह्मांड ने डपटा।
“पर आप कैसे विस्मृत कर रहें हैं कि शुद्धिकरण के लिए बहुत सी चीजों को हटाना पड़ता है।” वह बोली।
ब्रह्मांड बीच मे ही बोल पड़े- तो क्या अच्छी चीजों को भी नष्ट कर दोगी? इंसान ब्रह्मांड की नायाब निर्मिति में से एक है फिर उसे क्यों नष्ट करने पर तुली हो…”
“आप ठीक कहते हैं मनुष्य आपकी गज़ब कृति है पर उसकी हठधर्मिता और प्रकृति का स्वामी बनने की चाहत ने उसे अंधा बना दिया है। अब शुद्धिकरण में थोड़ी बहुत अच्छी चीज़ें भी निकल ही जाती है।”
ब्रह्मांड ने कहा-“वो तो है, पर सबक सिखाते सिखाते क्रूरता पर मत उतर जाना।”
–– डॉ. अनिता जैन “विपुला”