मेरी बस्ती में
लफ्जों को मेरी खबर नहीं है ,
आँखों में तेरी मञ्जर नहीं है ,
रब है मन मे तो कहर नहीं है ,
जीवन में मौत का बजर नहीं है ,
फिजाँ में इश्क का शजर नहीं है ,
राह में महलों सा बसर नहीं है ,
मन्दिर , मस्जिद सा शहर नही है ,
आदमी को समझे वो बहर नहीं है ,
धर्म की सियासत सात नगर नहीं है ,
पंछियों को जहर की खबर नहीं है ,
धन मद से बेखबर कोई पहर नही है ,
महामारी कोई राज का लहर नहीं है ,
मनुजता की जग में बहती नहर नहीं है ,
“वाग्वर” रब पर जग की नजर नहीं है ।।
- विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा