लघुकथा

कुर्बानी

”जहां कोशिशों का कद बड़ा होता है,
वहां नसीबों को भी झुकना पड़ता है.”
अभी-अभी जयेश के पास यह संदेश आया था.

”सच में कोरोना के इस विकट काल में कोशिशों के कद को बड़ा करना होगा.” जयेश सोच रहा था.

”पर कैसे?” मन तो प्रश्न करने में पीछे नहीं रहता न!

”जानें गँवाते या बीमारों की नि:स्वार्थ सेवाओं में शहीद होते हुए मानव ने कुर्बानी का संदेश नहीं दिया क्या?” प्रश्न पर प्रतिप्रश्न था.

”दिया न! मध्यप्रदेश के इंदौर में कोरोना पॉजिटिव कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर शत्रुघ्न पंजवानी जी ने अपनी जान गंवाई है. उनके धैर्य को हमारा नमन. इसी धैर्य के बल पर वे कोरोना मरीजों का इलाज भी करते रहे और हमें धैर्य भी बंधाते रहे कि वह बिलकुल ठीक हैं. ऐसे विकट समय ही तो धैर्य की परीक्षा होती है न!” जयेश को कुर्बानी की जय होती दिखाई दे रहा थी.

कुछ रुककर खुद से ही वह बोला- ”बहुत-से सरकारी कर्मचारी, बैंक कर्मचारी, हेल्थ वर्कर्स, सफाई वाले, गॉर्ड, सैनिक-सिपाही भी अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारी सेवा में रत हैं.”

एक मां अपने बेटे की सलामती के लि भय की कुर्बानी दे रही है. ”लॉकडाउन: 1400 km स्कूटी चलाकर फंसे हुए बेटे को घर लाने वाली मां से मिलिए” समाचार पढ़कर जयेश ने भी भय की कुर्बानी देने का मन बना लिया. निर्भयता-निडरता जाग गई थी.

मां तो मां थी! कोरोना की विशाल मुसीबत के सामने आम गृहिणियां तक अपनी सारी छोटी-मोटी शिकायतें भुला बैठी हैं. अब झाड़ू-फटका भी खुद ही करना है, बर्तन भी घिसने हैं, घर से काम और पढ़ाई करने वाले सब छोटे-बड़ों के पौष्टिक आहार का ध्यान भी रखना है, सो घुटनों का दर्द, थकान, सिर के चक्कर सब भूल-भाल गई हैं. उन्होंने अपनी छोटी-मोटी शिकायतों की ही कुर्बानी दे दी है!

तभी उसके सामने एक और समाचार की सुर्खी आ गई- ”दिल्ली में आदमी के 2000 के कई नोट गिर गए, देखिए कोरोना के डर से लोगों ने क्या किया” कमाल है! लोगों ने अपनी बेईमानी की कुर्बानी देना भी सीख लिया! यह तो ग़ज़ब हो गया!

”कुछ लोगों ने नशे की कुर्बानी दे दी थी. सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, यह तो सबको पता था, पर लोग बाज कहां आ रहे थे? अब तो सिगरेट मिल ही नहीं रही है, तो यह नशा अपने आप खत्म हो जाएगा न!” सोचकर जयेश बहुत खुश था.

”नशा ताश का भी बहुत बुरा है, अब तो यह भी छूट जाएगा, फासला जो रखना है. न बाजी जमेगी, न हार-जीत का झंझट और चिक-चिकबाजी. मौजां-ही-मौजां. फिर जो लोग नहीं मान रहे हैं और छत पर जाकर खेल रहे हैं, उन्हें सरकारी ड्रोन पकड़ रहा है. यानी अनुशासनहीनता की कुर्बानी पक्की!” जयेश की खुशी का ठिकाना नहीं था.

”चंडीगढ़ की सड़क पर मोर नाचता देख लोगों का स्ट्रेस दूर हो गया. यानी प्रदूषण की भी कुर्बानी!” इस मदमस्त समाचार ने लॉकडाउन के कारण मौसम सुधरने की मस्ती की मौज में जयेश भी मस्त हो गया.

तभी रेडियो पर अनिल आभा की दो आवाजों में बज रहे गाने- ‘कुर्बानी कुर्बानी कुर्बानी, अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी’ सुनकर जयेश नाचने लग गया. रसोईघर में उसकी पत्नी जया भी नाच रही थी.

घरेलू जिम्मेदारियों के साथ एक महिला के लिए घर में रहते बच्चे को पालना कितना कठिन होता है, हैं यह उसने देख लिया था. अब वह संतुलित जीवन जीना चाहता है जहां कार्य के साथ परिवार और उससे भी बढ़कर अपने आपको जानने के लिए समय हो, वर्क फ्रॉम होम करते हुए जयेश समझ गया था.

”कोरोना के डर से कर्त्तव्य और मस्ती की कुर्बानी तो नहीं ही देनी है न! तनाव की कुर्बानी ही देनी पड़ेगी, साहस और अनुशासनहीनता की नहीं, साअधानी में ही सुरणा है.” जयेश ने फेसबुक फ्रैंडस को मैसेज भेजा.

शायद कोरोना वायरस लोगों की सोच बदल रहा है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “कुर्बानी

  • लीला तिवानी

    कोरोना जैसे विकट समय में ही भले-बुरे, शत्रु-मित्र और संस्कारों की परी होती है. नकारात्मकता को नज़रअंदाज़ न करते हुए सकारात्मकता के साथ अंत तक चुनौतियों का सामना करते रहें तो अंत भी शानदार बन सकेगा. इसी उम्मीद में हम वर्तमान के हर पल का आनंद लेने में सक्षम होते हैं.

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