गीतों के गाँव में
[ गीत ]
शहर के कोलाहल से,चलो प्रिये लौट चलें !
गीतों के गाँव में,पीपल की छाँव में ।
कोयल अमराई हो, महकी पुरवाई हो ।
हो बसंत डाल डाल बगिया बौराई हो ।
गेहूं के पके खेत ,कनक सरिस दिखते हों,
प्राची पट ओढ़ लाल,ऊषा जब आई हो ।
चार नयन फिर उलझें ,सरित मध्य नाव में।
गीतों के गाँव……………….
पूनम की रात हो ,नदी का किनारा हो।
चकवी ने चक्रवाक को पुनः पुकारा हो।
खुले आसमान तले ,दूर सब झमेलों से
नींदों के बीच प्रिये स्वप्न बस तुम्हारा हो।
चिंता का लेश नही ,प्रियतम जिस ठाँव में।
गीतों के गाँव में…………………..
विरहा से सराबोर पपिहे का गीत हो ।
पंचम स्वर गुंजित हों,युवा मदनमीत हो।
धरती का रंग रूप ,नवब्याही युवती सा,
खिली हुईं कलियों से मधुकर की प्रीत हो।
झनन झनन झांझर हो गोरी तोरे पाँव में।
गीतों के गाँव में………………………
———–डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी २/४/२०२० गोरखपुर