जिंदगी
ओस की इक बूँद – सी
है जिंदगी मेरी
कभी फूल, कभी धूल
कभी आग या हवा
सोख लेता सूर्य
या बरसात में मिलना
है नहीं रक्षित कहीं
मेरी जगह
मेरा वज़ूद।
जिंदगी का चक्र
फिर भी ठेलता हुआ
चल रहा हूँ देख सूरज,
चाँद, तारों को
अनगिनत राही
गये होंगे क्षितिज को लाँघकर
छोड़कर अमरत्व की
ख़्वाहिश हठीली
अप्राप्य मनभावन रसीली
कर्मपथ पर बढ़ रहा हूँ
जिंदगी सर पर उठाये
चल रहा हूँ।
है मगर कोशिश मेरी
कि लौटकर
पीछे कभी मत देखना
रुकना नहीं
झुकना नहीं
बस जिंदगी की बूँद को
पल भर सही
अपनत्व दे दो।