ग़ज़ल – कोरोना
हादसों का शहर है, न जाओ सजन,
अब तो घर में समय को बिताओ सजन।
वायरस मौत बनकर रही घूमती,
हाथ उससे नहीं तुम मिलाओ सजन।
थूकते कुछ अमानुष, इधर से उधर,
उनसे खुद भी बचो फिर बचाओ सजन।
हाथ डंडा लिये, घूमती है पुलिस,
इस उमर में न इज्जत लुटाओ सजन।
हाथ में हाथ लेकर, हुए हमसफ़र,
काम में हाथ मेरा, बँटाओ सनम।
बाल – बच्चे नहीं, बस अकेले मिरे,
फर्ज़ बापू का, कुछ तो निभाओ सजन।
सेनिटाइज़ करो खूब घर – आँगना,
साफ रहकर, सफाई सिखाओ सजन।
आप मेरे सखा, मैं सखी आपकी,
प्रेम के फूल, फिर से खिलाओ सजन।
मान मेरा कहा, घर से बाहर न जा,
लॉकडाउन है लॉकअप में आओ सजन।
–– डॉ अवधेश कुमार अवध