जहरीली फ़िज़ा की हमें बयार नहीं चाहिए।
शर्तों पर निभने वाला वो प्यार नहीं चाहिए।
वक्त आनें पर निष्ठा बदले, भीतर घात करे,
दो मुंह वाली दो धारी तलवार नहीं चाहिए।
जातपात की बू हो,बात इंसानियत की करे,
धर्मों की ठेकेदारी का ठेकेदार नहीं चाहिए।
जिस थाली में खा कर उसी में छेद है करता
भेदी हो जो घर का,ऐसा गद्दार नहीं चाहिए।
सुख में रहता है जो सच्चा साथी बन कर के,
दुख में मुंह छुपाए ऐसा यार नहीं चाहिए।
हिम्मत से तुफान की लहर जो मोढ़ देते हैं,
डूबो दे जिंदगी ,ऐसी मँझधार नहीं चाहिए।
अपनें हित के लिए खून अपनों का ही करे,
भाईभाई में होता ऐसा व्यवहार नहीं चाहिए।
चंद पैसों के लिए है जहाँ इमान बिकता हो,
चूसे खून गरीबों का वो व्यापार नहीं चाहिए।
— शिव सन्याल